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________________ बंदी बनाकर कारागार में डाला, अन्ततः श्रीकृष्ण द्वारा अपमानित होना पड़ा और प्राण गँवाये | बल का मद रावण ने किया, जिससे वह अपमानित हुआ और अन्त में नरक जाना पड़ा । रूप का मद सनतकुमार चक्रवर्ती ने किया और उसका मान सभा में खण्डित हुआ । यह रूप आदि सभी क्षणभंगुर हैं, अनित्य हैं । ऐसा विचारकर उसे वैराग्य हो गया और उसने मुनिदीक्षा लेकर अपना कल्याण किया । तप का मद सन्यासी ने किया, जिसके कारण वह शीलवन्ती नारी से अपमानित हुआ । एक दिन एक सन्यासी तपस्या कर रहा था । ध्यान से उठा और उसकी नजर आकाश में उड़ते हुये पक्षी पर पड़ गई । वह पक्षी तुरन्त नीचे गिर पड़ा, सो उस साधु को घमंड हो गया कि मैं जिसको चाहूँ नीचे गिरा सकता हूँ। एक बार वह एक बस्ती में भिक्षा लेने के लिए आया, तब एक महिला से अकड़कर बोला- जल्दी दे दो जो देना है | तब महिला ने कहा- मैं पक्षी थोड़े ही हूँ जो देख लोगे तो गिर जाऊँगी । तब उस साधु ने कहा- तुझे कैसे मालूम? वह महिला बोली- मैं शीलवन्ती महिला हूँ, मुझे सब मालूम है । तब उस साधु की गर्दन शर्म से झुक गई । धन का मद एक महिला ने किया, जिसके कारण उसने आग लगाकर अपना नुकसान किया । अहंकार कोई भी हो, पतन का ही कारण होता है । एक बार एक किसान महिला पहाड़ी पर अपने खेत में फसल काट रही थी कि उधर से एक दुष्टप्रकृति वाले व्यक्ति ने अकेली 178
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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