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________________ भी पैसा लगेगा वह समाज से लूँगा, किसी एक व्यक्ति से नहीं। आखिर ऐसा ही हुआ । प्रत्येक घर स नाममात्र चन्दा लिया गया। जब कलशारोहण का समय आया तो हरसुखराय जी ने स्पष्ट कह दिया-यह मंदिर समाज के चन्द से बना है। अतः व ही कलशाराहण करें । तब सभी लोगों की आँखों में आँसू आ गये और उन्हें चंदा लेने का रहस्य समझ में आ गया । मार्दवधर्म ही इस लोक और परलोक में इस जीव का परम हितैषी मित्र है और अहंकार उस कागज की नाव के समान है जो एक-न-एक दिन हम सबको ले डूबेगी, हमारी समस्त महत्त्वाकाँक्षाएँ बिखर जायेंगी। अहंकार करना अपने कल्याण के मार्ग को अवरुद्ध करना है। चाह वह ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप, शरीर आदि कोई भी मद हो, पतन का ही कारण है। ज्ञान का मद इन्द्रभूति गौतम ने किया था और समवसरण में मानस्तम्भ को देखकर उसका मान गलित हुआ और जब अहंकार को छोड़कर भगवान क चरणों में समर्पित हुआ तो दैगम्बरी दीक्षा धारण कर गौतम गणधर बने और भगवान की वाणी को सुनाकर अपना तथा सबका कल्याण किया । __ मस्करी ने पूजा का मद किया, भगवान महावीर स्वामी को ढोंगी कहा और भ्रष्ट हाकर अनेक कुमत चलाये, आखिर आत्मकल्याण नहीं कर पाया और अनन्तसंसार में भटक गया । ___अर्ककीर्ति ने कुल का मद किया और सेनापति जयकुमार से युद्ध में हारा। इस प्रकार उसका मान खंडित हुआ | जाति का मद कंस ने किया और उसने अपने पिता उग्रसन को (177)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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