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________________ ऐसे मुनिराज भी हो गये हैं जो 3 दिन में मोक्ष चले गये । सिर्फ 3 दिन और 3 रात उन्होंने तपस्या की और पार हो गये । तुम सालों की गिनती लगा रहे हो । मैं तपस्या में बड़ा हूँ, ऐसा हिसाब मत जोड़ो | अन्तर्मुहूर्त की तपस्या करके भी कल्याण हो सकता है और वर्षों की तपस्या करके मद करे तो अकल्याण भी हो सकता है । इसलिये तप करके तप का मद मत करो । जो सच्चे तपस्वी होते हैं, वे कभी भी तप का मद नहीं करते । विष्णु कुमार मुनिराज को ऋद्धि होते हुये भी उन्हें उसका पता तक नहीं था। असंयमी सम्यग्दृष्टि भी मद नहीं करता । 'त्रिमूढापोढमष्टांगम् सम्यग्दर्शनमस्मयम् ।' सम्यग्दर्शन में मद नहीं होता । यह तप का मद भी व्यर्थ है । जो मद करता है, वह साधुपद से च्युत हो जाता है। एक आचार्य जी के पास दो शिष्य आशीर्वाद लेने आये । एक को तो आचार्य जी ने दो बार आशीर्वाद दिया और दूसरे की तरफ देखा भी नहीं। वह शिष्य बोला - महाराज ! आप रागद्वेष करते हैं । इनको दो बार आशीर्वाद दिया और मुझे एक बार भी नहीं दिया, जबकि वह माल खाकर आया है, श्रावकों के यहाँ चातुर्मास करके आया है और मैंने चार महीने सिंह की गुफा में तपस्या की है। आचार्य जी बोले- बस, इतनी-सी बात थी, तेरी तपस्या की परीक्षा करनी थी । तूने तपस्या नहीं की, शरीर को सुखाकर अभिमान खड़ा किया है । तुझे मद हो गया है तपस्या का कि मैं बड़ा तपस्वी हूँ, चार महीने के उपवास करके आया हूँ । इसलिये तुम साधु पद से च्युत हो गये हो । अब तुमको प्रायश्चित्त लेना पड़ेगा, तब फिर से तुम साधु बन पाओगे | जो भी इन आठ बातों को लेकर मद करते हैं, वे अभी पर्याय में 150
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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