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________________ लेकर वे आगे चलकर बहुत बड़े आचार्य बने, जिन्होंने ' श्लोक - वार्तिक' ग्रन्थ की रचना की । वास्तव में जिसने इन क्रोध, मान आदि कषायों को जीत लिया, वही सच्चा विद्वान् है । तप का भी मद होता है। जो लोग रसों का त्याग कर लेते हैं, उपवास आदि कर लेते हैं, कभी-कभी उनके अंदर भी एक बड़प्पन - जैसा आने लगता है कि मैं बाकी लोगों से बड़ा हो गया हूँ । संयम व तप तो आत्म कल्याण करने के साधन हैं, पर आज तो लोगों को तप का भी अभिमान हो जाता है। अपने अंदर कुछ तपश्चरण की शक्ति होने पर यह कहना कि मेरे समान तपस्वी कोई नहीं है, मैं महीनों - महीनों का उपवास कर लेता हूँ, मैं छहों रसों का त्यागी हूँ, मैं गर्मी में धूप में बैठकर घंटों ध्यान लगाता हूँ, मैं यह करता हूँ, मैं वह करता हूँ, यह सब तप का अभिमान है, जो सब किये कराये पर पानी फेर देता है । यह तप का मद भी हितकारी नहीं है । मैं साल में 50 उपवास कर लेता हूँ, ऐसा अहंकार मत करो। मल्लिनाथ भगवान केवल तीन उपवास करके अर्थात् उन्होंने दीक्षा ली, 3 उपवास किये, फिर आहार किया और बस छटवें दिन तो उनको केवलज्ञान हो गया। बड़े-बड़े महापुरुषों का जब स्मरण करते हैं तो पता चलता है कि मैं जो अपने को सीनियर समझने लगा हूँ, यह एक बहुत बड़ी भ्रान्ति है । 'मूलाचार' ग्रंथ में आचार्य वट्टकेर स्वामी ने मुनिराजों को भी सचेत किया है । वो कहते हैं कि 'हो हा वास गणना न तत्थ वासाणि परिगणित चिंति कित्तिय तप्ति उत्ता निट्ठिय कदला पुराजादा ।' हे साधु ! तू वर्षा की गिनती क्यों लगा रहा है कि अब मेरी दीक्षा को 27 साल हो गये, मैं बहुत ज्येष्ठ हो गया हूँ, मैं बहुत पूर्व का दीक्षित हूँ । 'न तथ्य वासाणि परिगणित चिंति ।' इस मोक्ष के मार्ग में साल नहीं गिनते । 149
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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