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________________ साधु का तिरष्कार कर दिया कि ये विचारे क्या जानें, इन्हें तो कुछ नहीं आता। तो आपका ज्ञान लोप हो जायगा । शिवभूति महाराज के ज्ञान का एकदम लोप हो गया। वे बहुत बड़े विद्वान् थे, पर अकस्मात उनका सारा ज्ञान लापता हो गया । फिर जब किन्ही अवधिज्ञानी मुनिराज से प्रश्न किया कि क्या कारण है, ऐसा कौन-सा दोष हुआ है मुझसे कि हम कुछ भी याद नहीं कर पाते, हमारी स्मृति शून्य हा गई, क्या कारण है? तो महाराज बताते हैं-तुमने उस समय ज्ञान के मद में आकर मुनिराजों के समूह में कोई ऐसे वाक्य कह दिये थे कि, अर! ये ता अनपढ़ हैं, इन्हें तो कुछ नहीं आता ये तो जबरदस्ती दीक्षा ले लेते हैं। आपने ज्ञान के मद में आकर एसे अपशब्द निकाल दिये थे, जिसका परिणाम यह हुआ कि तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो गया | मद का परिणाम कभी अच्छा नहीं होता | यदि आत्मज्ञान नहीं हुआ तो अल्पज्ञानियों का वह ज्ञान भी मद का कारण बन जाता है | और वह मद के कारण अपने को बहुत बड़ा विद्वान् तथा दूसरों को मूर्ख समझने लगता है | इन्द्रभूति गौतम को भी अपने ज्ञान का बहुत अहंकार था । लेकिन अपनी योग्यता का भान तो व्यक्ति को तब होता है जब ऊँट पहाड़ के नीचे आता है। एक नीतिकार ने लिखा है कि मूर्ख को आसानी स समझाया जा सकता है, विद्वान् को उससे भी अधिक आसानी से समझाया जा सकता है, किन्तु थोड़े से ज्ञान के मद में विमूढ़ (भ्रमित) हुये लोगों को भगवान भी समझाने में समर्थ नहीं हैं। कभी भी ज्ञान का मद नहीं करना चाहिये | ज्ञान का फल तो यही है कि जीवन में उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि गुण आयें | वास्तव में ज्ञानी तो वही है जिन्होंने अपने जीवन को सरल वा शान्त बना लिया।
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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