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________________ * उत्तम मार्दव धर्म धर्म का दूसरा लक्षण है-उत्तम मार्दव | मार्दव संस्कृत भाषा का शब्द है। मृदोर्भावः कर्मवा मार्दवम् | जो मृदु है, कोमल है, उसका जो भाव है, उस मार्दव कहते हैं। मद के कारण मृदुता का अभाव हो जाता है। मद का अर्थ होता है नशा | मद के नशे में व्यक्ति मदमत्त हो जाता है और वह अपने को उच्च तथा दूसरों को तुच्छ समझने लगता है। वह अपनी प्रतिष्ठा के लिये दूसरों की निन्दा व अपनी प्रशंसा करता है। मानी व्यक्ति मान-सम्मान की प्राप्ति के लिये सबकुछ करने को तैयार रहता है। यहाँ तक कि अत्यन्त मेहनत से कमाय धन को भी पानी की तरह बहाने को तैयार हो जाता है। मानकषाय का छोड़ना अत्यन्त कठिन है | घर-बार, स्त्री-पुत्रादि सब छोड़ देन पर भी मान नहीं छूटता। अच्छे-अच्छे महात्माओं को भी आसन की ऊँचाई के लिये झगड़ते देखा जा सकता है। कंचन तजना सहज है, तज नारी को नेह । मान बड़ाई ईया, दुर्लभ तज ना ऐ ह ।। जिस प्रकार क्षमाधर्म का विरोधी क्रोध है, उसी प्रकार इस मार्दवधर्म का विरोधी मान है। मान-कषाय का मर्दन करना ही मार्दवधर्म है। यह संसारी-प्राणी अनादिकाल से मान-अपमान के (115)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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