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________________ हुए कृष्ण पर बाण चलाया, जिससे बिना पानी पिये ही उनका निधन हो गया । द्वीपायान भी अपने तेजस गोले से स्वयं भस्म हो गये । इस तरह क्रोधी मनुष्य क्रोध में आकर अपना तथा दूसरों का विनाश कर डालता है । रीछ को क्रोध के समय यदि आस-पास कोई प्राणी न दिखे तो वह अपना ही शरीर चबा डालता है । सिंह, चीता, भेड़िया आदि क्रोधी दुष्ट स्वभाव से कितनी हिंसा किया करते हैं? 'सूक्तिमुक्तावली' में कहा है ― सन्तापे तनुते भिनत्ति विनयं सौहार्दमुत्यादय । त्युद्वेग जनयत्यवद्याचनं सूते विधत्ते कलिम् । कीर्ति कृन्तति दुमतिं वितरति व्याहन्ति पुण्योदयं, दत्ते यः कुगतिं स हातुमुचितो रोषः सदोषः सताम् ।। यानी क्रोधकषाय सन्ताप फैलाती है, विनय को नष्ट कर देती है, मित्रता भंग कर देती है, व्याकुलता उत्पन्न करती है, अपशब्द मुख से निकलवाती है, कलह उत्पन्न कराती है, यश का नाश करती है। दुर्बुद्धि वितरण करती है, पुण्यकर्म को नष्ट करती है, दुर्गति में पहुँचाती है । बताओ ऐसा क्रोध करने से इस जीव को क्या लाभ मिलता है? अपने मे एक गुण होना चाहिये सहन शीलता का । जब आप जानते हैं कि यहाँ पर किसी का किसी पर कुछ अधिकार नहीं तो फिर उनके पीछे अपने परिणाम बिगाड़ने से क्या फायदा है । जब एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य पर कुछ अधिकार ही नहीं है, तब फिर दुनिया में किसी भी वस्तु का कुछ भी परिणमन हो, उससे मेरा क्या वास्ता? यों सहन-शीलता होना, जीव को सुखी बनाती है । कैसा भी प्रसंग हो सदा क्रोध - कषाय को छोड़कर क्षमाधर्म का धारण करना चाहिये । — 114
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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