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________________ भामाशाह भामाशाह-मैं अभी ही सेनापति को वीर योद्धाओं के साथ देलवाड़ा की ओर प्रयाण करने का आदेश देता हूं। इस आक्रमण में मैं भी आपके साथ ही रहूंगा। प्रताप सिंह-अवश्य रहिये, मैं युद्ध-वेष से सज्जित हो रहा हूँ। आप भी शस्त्रास्त्रों से अलंकृत हो शीव्र आइये । भामाशाह-मैं अभी आया । ( गमन ) पटाक्षेप दृश्य ७ स्थान-दिल्ली का राजभवन । ( अकबर और खानखाना) अकबर-चिन्तित स्वरमें) उदयपुरसे प्राप्त संवादसे मैं विस्मित और उद्विग्न हो रहा हूं। महाराणा को अपने चरणों पर नत देखने की मुझे उत्कट लालसा थी, पर अब इस लालसा का स्वप्न से अधिक महत्व नहीं। महाराणा के स्वामिभक्त मंत्री ने अपनी पूर्वजोपार्जित सम्पत्ति मेवाड़-उद्धार के लिये भेंट कर दी है। समाचार है कि उस सम्पत्ति से २५ सहस्र सेना का १२ वर्ष का व्यय चलेगा । इतनी उदारता और स्वामिभक्ति मैंने संसार में नहीं देखी, प्राचीन इतिहास में भी इसकी समता का उदाहरण नहीं है। खानखाना-यवन सम्राट ! आपका कथन सत्य है । भामाशाहकी असीम सहायता से ही उत्साहित हो महाराणा सैन्य-बृद्धि में जुटे हैं। १३८
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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