SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह अमर सिंह-दाजी राज ! प्रथम प्रयास में ही आपके प्रसाद से सफलता मिली । थाने पर यवन-सैनिकों की अल्प संख्या सिद्धि का कारण रही । मैं केशरिया ध्वजारोहण कर और रक्षा-भार विश्वस्त सैनिकों को सौंप विजय-संदेश देने आया हूं। __ प्रताप सिंह--( हर्ष पूर्वक ) साधुवाद ! प्रथम प्रयास की सफलता भावी युद्धों में भी सफलता की सूचना देती है । मन्त्रिवर ! कहिये, भावी युद्ध-कार्यक्रम के विषय में आपकी क्या सम्मति है ? __ भामाशाह-मेरे विचारों से यवनों द्वारा विजित अन्य दुर्गों पर भी शीघ्र ही आक्रमण किया जाये। कारण अभी शत्रु दल सचेत नहीं हो पाया, उनकी यह असावधानी स्वर्ण में सुगन्धि बन रही है। प्रताप सिंह-अभी हमें ज्ञात नहीं हुआ है कि खानखाना कहां हैं ? पर उसकी विशाल वाहिनी का सामना करने में अभी हम समर्थ नहीं। अतः देलवाड़ा का ही दुर्ग विजित किया जाये। कारण शाहवाज खां की अल्प-संख्यक सेना सुगमता से पराजित हो सकेगी। ____ भामाशाह-यह योजना सुन्दर है, इसके अनुसार देलवाड़ा के दुर्ग के साथ कुम्भलमेर के उस दुर्ग पर भी अधिकार हो जायेगा; जिसके अधिकारमें होने से यवनों के प्रयास विफल करने में सुग। मता होगी। प्रताप सिंह-यही निश्चय उत्तम है, आप शीघ्र ही सैन्य सुसज्जित कराइये । आक्रमण में विलम्ब अवांछनीय है। १३७
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy