SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [504] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन उपर्युक्त वर्णन का सारांश यह है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में केवलज्ञान का विस्तृत वर्णन किया गया है। उसी वर्णन के आधार पर दोनों परम्पराओं में केवलज्ञान में कुछ अन्तर प्रतीत हुआ है जो निम्न प्रकार से है। 1. श्वेताम्बर परम्परा में केवलज्ञान के भेद-प्रभेदों का स्पष्ट उल्लेख है, यथा-भवस्थ और सिद्धस्थ केवलज्ञान। भवस्थ केवलज्ञान के सयोगी और अयोगी और सिद्ध केवलज्ञान के अनन्तर और परम्पर भेद होते हैं, किन्तु दिगम्बर परम्परा में इस प्रकार के स्पष्ट भेदों का उल्लेख नहीं है। सयोगी और अयोगी गुणस्थान के आधार पर सयोगी और अयोगी केवली का वर्णन मिलता है। इसके आगे के भेदों का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। भवस्थ केवलज्ञान को यहाँ पर तद्भवस्थ केवलज्ञान कहा जाता है। 2. श्वेताम्बर परम्परा में स्त्रीलिंग सिद्ध स्वीकार किया गया है तथा केवली को कवलाहारी माना गया है। लेकिन दिगम्बर परम्परा में स्त्री मुक्ति का विरोध किया गया है तथा केवली को कवलाहारी भी स्वीकार नहीं किया गया है। 3. श्वेताम्बर परम्परा में केवली समुद्घात में दण्ड समुद्घात का एक जैसा ही नाप बतया है। परन्तु दिगम्बर परम्परा में कायोत्सर्ग स्थित केवली के दण्ड समुद्घात उत्कृष्ट 108 प्रमाण अंगुल ऊँचा, 12 प्रमाणांगुल चौड़ा और सूक्ष्म परिधि 37 १५/११३ प्रमाणांगुल युक्त है। पद्मासन स्थित (उपविष्ट) दण्ड समुद्धात के सम्बन्ध में ऊँचाईं 36 प्रमाणांगुल और सूक्ष्म परिधि २७/११३ प्रमाणांगुल युक्त है। (क्षपणसार, गाथा 623) 4. श्वेताम्बर परम्परा में केवली समुद्घात में जीव वेदनीयादि अघाती कर्मों की कितनी-कितनी प्रकृतियों को क्षय करता है, इसका स्पष्ट उल्लेख है, किन्तु दिगम्बर परम्परा में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। 5. श्वेताम्बर परम्परा में योग-निरोध की प्रक्रिया में केवली सर्वप्रथम मनोयोग का निरोध करता है। उसके पश्चात् वचनयोग, उसके बाद काययोग का निरोध होने के साथ ही श्वासोच्छ्वास (आनापाननिरोध) का निरोध भी हो जाता है, परन्तु दिगम्बर परम्परा में केवली योग निरोध के लिए बादर काययोग से बादर मनोयोग का निरोध करता है। फिर बादर वचनयोग का, फिर बादर काययोग से बादर उच्छ्वास नि:श्वास का निरोध करता है। पुनः अंतर्मुहूर्त से बादर काय योग से उसी बादर काययोग का निरोध करता है। तत्पश्चात् अंतर्मुहूर्त के बाद सूक्ष्म काययोग से सूक्ष्म मनोयोग का निरोध करता है। तत्पश्चात् अंतर्मुहूर्त बाद सूक्ष्म वचनयोग का निरोध करता है। पुनः अंतर्मुहूर्त के बाद सूक्ष्म काययोग से सूक्ष्म उच्छ्वास-नि:श्वास का निरोध करता है। पुनः अंतर्मुहूर्त के बाद सूक्ष्म काययोग से सूक्ष्म काययोग का निरोध करता हुआ विभिन्न प्रकार के करणों को करता हुआ अंतर्मुहूर्त काल बाद अयोगी होता है। 6. श्वेताम्बर परम्परा में केवली के उपयोग के सम्बन्ध में तीन मत प्राप्त होते हैं - 1. क्रमवाद, 2. युगपद्वाद, 3. अभेदवाद। जबकि दिगम्बर परम्परा में केवली के उपयोग को युगपद् स्वीकार किया गया है। 7. दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ गोम्मटसार के अनुसार समुद्घात में जीव पुन: पर्याप्तियों को पूर्ण करता है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है।
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy