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________________ सप्तम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में केवलज्ञान [497] केवलज्ञान के अधिकारी नहीं होते हैं। सम्यग्यदृष्टि में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना एवं शेष दो (मिथ्या, मिश्र) दृष्टियों में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 9. ज्ञान द्वार - मति आदि चार ज्ञान में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवल नहीं, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से भजना से होता है। केवलज्ञानी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा नियमा और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान नहीं होता है एवं शेष मति आदि चार मति आदि तीन अज्ञान में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 10. दर्शन द्वार - चक्षु आदि तीन दर्शन में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान नहीं होता है और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना से होता है। केवलदर्शन में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा नियमा और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा नहीं होता है। 11. संयत द्वार - संयत (यथाख्यात चारित्र) और नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत (सिद्ध) को ही केवलज्ञान होता है। सामायिक आदि चार चारित्र, असंयत और संयतासंयत (श्रावक) को केवलज्ञान नहीं होता है। यथाख्यातचारित्र में पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान की भजना, नो संयत नो असंयत नो संयतासंयत (सिद्ध) पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा नहीं होता है। शेष सामायिक आदि चार चारित्र, असंयत और संयतासंयत (श्रावक) में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 12. उपयोग द्वार - साकार और अनाकार उपयोग वाले में केवलज्ञान होता है। साकारोपयोग में पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान की भजना एवं अनाकारोपयोग में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की भजना, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से केवलज्ञान नहीं होता है। ___ 13. आहार द्वार - श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार (कवलाहार की अपेक्षा) आहारक और अनाहारक दोनों अवस्था में केवलज्ञान होता है। दिगम्बर परम्परा में अनाहरक को ही केवलज्ञान होता है। इस सम्बन्ध में दोनों परम्परा के आचार्यों ने अपने-अपने मत का विस्तार से मण्डन और परपक्ष का खण्डन किया है। उन चर्चाओं का पढ़ने पर सार रूप से यही उचित लगता है कि केवलज्ञान आहारक और अनाहारक दोनों को हो सकता है। आहारक में पूर्वप्रतिपन्न नियमा और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान की भजना एवं अनाहारक में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की भजना, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से केवलज्ञान नहीं होता है। 14. भाषक द्वार - भाषक और अभाषक को केवलज्ञान होता है। भाषक में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा नियमा और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान की भजना एवं अभाषक में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की भजना, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से केवलज्ञान नहीं होता है। 15. परित्त द्वार - परित्त और नो परित्त नो अपरित्त (सिद्ध) को केवलज्ञान होता है। अपरित्त में केवलज्ञान नहीं होता है। परित्त में पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान की भजना एवं नो परित्त नो अपरित्त (सिद्ध) में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से केवलज्ञान नहीं होता है एवं अपरित्त में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 16. पर्याप्त द्वार - पर्याप्त और नो पर्याप्त नो अपर्याप्त (सिद्ध) को केवलज्ञान होता है। अपर्याप्त में केवलज्ञान नहीं होता है। पर्याप्त में पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा केवलज्ञान
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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