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________________ [496] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन गति आदि द्वारों के माध्यम से केवलज्ञान का वर्णन १. सत्पदप्ररूपणा- टीकाकार मलधारी हेमचन्द्र ने सत्पदप्ररूपणा के अर्न्तगत गति आदि 20 द्वारों के माध्यम से केवलज्ञान का उल्लेख किया है, जिसका वर्णन निम्न प्रकार से है 95 1. गति द्वार - गति की अपेक्षा से मनुष्य और सिद्ध केवलज्ञान के अधिकारी हैं। देव, नारक और तिर्यंच गतियों में केवलज्ञान नहीं होता है। मनुष्य गति में पूर्वप्रतिपन्न (भूतकाल का ज्ञान) की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान (वर्तमान के एक समय का ज्ञान) की अपेक्षा से भजना, सिद्धों में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से नहीं होता है एवं शेष तीन गतियों में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 2. इन्द्रिय द्वार - भावेन्द्रियों की अपेक्षा से अनिन्द्रिय जीव को ही केवलज्ञान होता है, क्योंकि केवलज्ञान इन्द्रिय निरपेक्ष है। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों को केवलज्ञान नहीं होता है। अनिन्द्रिय में पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 3. काय द्वार - काय की अपेक्षा से त्रसकाय और अकाय (सिद्ध) को केवलज्ञान होता है। पृथ्वी आदि पांच कायों के जीवों को केवलज्ञान नहीं होता है। त्रसकाय में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना, अकाय में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से नहीं होता है एवं शेष पृथ्वी आदि पांच कायों में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। ___4. योग द्वार - मन, वचन और काया से युक्त सयोगी और इन तीन योगों से रहित अयोगी इन दोनों प्रकार के जीवों को केवलज्ञान होता है। सयोगी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना होती है। अयोगी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा नहीं होता है। 5. वेद द्वार - अवेदी (भाववेद की अपेक्षा से) में केवलज्ञान होता है। स्त्रीवेद, पुरुष और नपुसंक वेद अर्थात् सवेदी (भाव रूप से किसी भी वेद से युक्त हो) को केवलज्ञान नहीं होता है। अवेदी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना है। शेष तीन वेदों (अर्थात् सवेदी) में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 6. कषाय द्वार - क्रोध, मान, माया और लोभ से रहित अकषायी जीव को ही केवलज्ञान होता है। क्रोध, मान, माया और लोभ से युक्त जीव को केवलज्ञान नही होता है। अकषायी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना एवं शेष चार कषायों में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। ___7. लेश्या द्वार - सलेश्यी (शुक्ललेश्यी) और अलेश्यी को केवलज्ञान होता है। कृष्णादि पांच लेश्या से युक्त जीव को केवलज्ञान नहीं होता है। शुक्ललेश्यी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा भजना होती है। अलेश्यी में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा से केवलज्ञान की नियमा, प्रतिपद्यमान की अपेक्षा नहीं होता है और शेष कृष्णादि पांच लेश्याओं में दोनों अपेक्षाओं से केवलज्ञान नहीं होता है। 8. सम्यक्त द्वार - सम्यग्दृष्टि को केवलज्ञान होता है। मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि वाले जीव 295. मलधारी हेमचन्द्र, बृहदवृत्ति पृ. 339-340
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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