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________________ [22] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन तथा इनकी चूर्णियों का पूरा उपयोग आचार्य हरिभद्र की टीकाओं में हुआ है। अतः जिनदासगणि का समय वि. सं. 650-750 के लगभग माना जा सकता है, क्योंकि इनके पूर्ववर्ती आचार्य जिनभद्रगणि वि. सं. 600-660 के लगभग 2 और उत्तरवर्ती आचार्य हरिभद्र वि. सं. 757-827 के लगभग विद्यमान थे 3 नन्दी चूर्णि के अन्त उसका रचना काल शक संवत् 598 (वि. सं. 733) उल्लिखित है। 84 इस प्रकार जिनदासगणि महत्तर का समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जा सकता है। आवश्यकचूर्णि आवश्यकचूर्णि निर्युक्ति के अनुसार लिखी गई है, भाष्य की गाथाओं का उपयोग भी यत्र-तत्र हुआ है। मुख्य रूप से भाषा प्राकृत है, किन्तु संस्कृत के श्लोक एवं गद्य पंक्तियाँ भी उद्धृत की गई हैं। भाषा प्रवाह युक्त है। शैली में लालित्य व ओज है। इसमें कथाओं की प्रचुरता है। विशेषकर ऐतिहासिक आख्यानों का वर्णन विशाल दृष्टिकोण से संपृक्त है अत: ऐतिहासिक दृष्टि से इस चूर्णि का महत्त्व अन्य चूर्णियों की अपेक्षा अधिक है । विषय का जितना विस्तार इस चूर्णि में किया गया है उतना अन्य चूर्णियों में उपलब्ध नहीं है । ओघनियुक्ति चूर्णि, गोविन्दनिर्युक्ति, वसुदेवहिण्डी आदि अनेक ग्रन्थों का उल्लेख इसमें हुआ है । विषय वस्तु - सर्वप्रथम मंगल की चर्चा की गई है। भावमंगल में ज्ञान का निरूपण है। श्रुतज्ञान की दृष्टि से आवश्यक पर निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया गया है । द्रव्यावश्यक और भावावश्यक पर प्रकाश डाला गया है। श्रुत का प्ररूपण तीर्थंकर करते हैं। तीर्थंकर कौन होते हैं, इस प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान् शब्द की व्युत्पति दी गई है। सामायिक नामक प्रथम आवश्यक में चूर्णिकार ने द्रव्यपरंपरा और भावपरंपरा के माध्यम से सामायिक का वर्णन किया है। सामायिक का उद्देश्य, निर्देश, निर्गम आदि २६ द्वारों से विचार करने का संकेत करते हुए निर्गम द्वार के माध्यम से भगवान् महावीर के पूर्व भवों का कथन करते हुए उनके जीवन सम्बधी सभी घटनाओं का विस्तृत वर्णन इसमें उपलब्ध होता है। आवश्यकनिर्युक्ति के समान ही भगवान् ऋषभदेव आदि तीर्थंकरों पर भी प्रकाश डालते हुए निह्नववाद का वर्णन किया गया है। इसके बाद द्रव्य, पर्याय, नयदृष्टि से सामायिक के भेद, उसका स्वामी, उसकी प्राप्ति का क्षेत्र, काल, दिशा, सामायिक करने वाला, उसकी प्राप्ति के हेतु और इस विषय से संबंधित आनन्द, कामदेव का दृष्टान्त, अनुकम्पा आदि हेतु और मेंठ, इन्द्रनाग, पुण्यशाल, शिवराजर्षि, गंगदत्त, दशार्णभद्र, इलापुत्र आदि के दृष्टान्त दिये गए हैं। सामायिक की स्थिति, सामायिक वालों की संख्या, सामायिक का अन्तर, सामायिक का आकर्ष, समभाव की महत्ता का प्रतिपादन करने के लिए दमदत्त एवं समता के लिए मेतार्यमुनि का दृष्टान्त दिया गया है । समास के लिए चिलातिपुत्र, संक्षेप और अनवद्य के लिए धर्मरुचि व प्रत्याख्यान के लिये तेतलीपुत्र का दृष्टान्त देकर विषय को स्पष्ट किया गया है। इसके पश्चात् सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति की चूर्णि है । उसमें नमस्कार महामंत्र, निक्षेप दृष्टि से स्नेह, राग व द्वेष के लिए क्रमशः अर्हन्नक, धर्मरुचि तथा जमदग्नि का उदाहरण दिया गया है। अरिहन्तों व सिद्धों को नमस्कार, औत्पत्तिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धि, कर्म, समुद्घात, योगनिरोध, सिद्धों का अपूर्व आनन्द, आचार्यों उपाध्यायों और साधुओं को नमस्कार एवं 84. नंदीसूत्रचूर्णि (प्रा. टे. सो.) पृ. 83 82. गणधरवाद, प्रस्तावना पृ. 32-33 83. जैन आगम, पृ. 27
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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