SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [331] प्रदेश की अपेक्षा से भी तुल्य हैं, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थान पतित हैं, स्थिति की अपेक्षा से भी चतुःस्थान पतित हैं किंतु वर्णादि तथा आठ स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित हैं।92 पंचसंग्रह के अनुसार वर्गणाओं का विवेचन __ 1-2. ध्रुवाचित्त और अध्रुवाचित्त वर्गणाओं का स्वरूप विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार ही है। 3,5,7,9. ध्रुवशून्य वर्गणा - ये पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी ध्रुववर्गणा है। जो वर्गणा लोक में हमेशा रहने वाली और निरंतर एकोत्तर वृद्धि वाली होती है। प्रथम ध्रुवशून्य वर्गणा अनंती है। इसी प्रकार से दूसरी, तीसरी और चौथी वर्गणाएं भी अनंती है। पहले जो ध्रुव वर्गणाएं कही हैं उनसे यह भिन्न हैं, क्योंकि ये वर्गणाएं ऊपर कही हुई ध्रुव वर्गणा से अतिसूक्ष्म परिणामवाली और बहुत द्रव्यों से बनी हुई है। लेकिन पहली ध्रुव शून्य वर्गणा के बाद पंचसंग्रह में (4) प्रत्येकशरीरी बादर वर्गणा, (5) दूसरी ध्रुवशून्य वर्गणा (6) बादरनिगोद वर्गणा (7) तीसरी ध्रुव शून्यांतर वर्गणा (8) सूक्ष्मनिगोद वर्गणा (9) चौथी ध्रुवशून्यांतर वर्गणा (10) महास्कंध वर्गणा का वर्णन प्राप्त होता है। यहाँ पहले विवेचित वर्गणाओं से भिन्न का ही विवेचन किया जा रहा है। 4. प्रत्येकशरीरी वर्गणा - प्रत्येक नामकर्म के उदय वाले जीवों के यथासंभव सत्ता में रहे हुए औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण नामकर्म के पुद्गलों का अवलंबन लेकर सर्वजीवों के अनंतगुण परमाणु वाली जो वर्गणाएं होती हैं उनको प्रत्येकशरीरी वर्गणा कहते हैं। उत्कृष्ट ध्रुवशून्य वर्गणा से एक अधिक परमाणु वाली पहली जघन्य प्रत्येकशरीरी वर्गणा है। इस प्रकार एक परमाणु की वृद्धि वहाँ तक कहना चाहिए जहाँ तक उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरी वर्गणा प्राप्त न हो जाए। इन वर्गणाओं को जीव किसी कर्म के उदय से ग्रहण नहीं करता है, किंतु विनसा परिणाम से ही औदारिक आदि पांच शरीरी नामकर्म के पुद्गलों का अवलंबन लेकर रही हुई है।193 विशेषावश्यकभाष्य में वर्णित तीसरी शून्यांतर वर्गणा, चौथी अशून्यांतर वर्गणा और तेरहवीं मिश्र स्कंध वर्गणा का यहाँ ग्रहण नहीं किया है। भाष्य की दूसरी अध्रुव वर्गणा के बाद पांच से आठ ध्रुवानंतर वर्गणा का पंचसंग्रह में ग्रहण किया है। 6. बादरनिगोद वर्गणा - साधारण नामकर्म के उदय वाले बादर एकेन्द्रिय जीवों के सत्ता में रहे हुए औदारिक, तैजस और कार्मण नामकर्म के पुद्गल परमाणुओं के विस्रसा परिणाम द्वार अवलंबन लेकर सर्वजीवों की अपेक्षा अनंतगुण परमाणु वाली जो वर्गणाएं रही हुई हैं, उनको बादर निगोद वर्गणा कहते हैं। उत्कृष्ट ध्रुव शून्य वर्गणा से एक अधिक परमाणु के स्कंध रूप जघन्य एक वृद्धि से यावत् उत्कृष्ट बादरनिगोद वर्गणा होती है।194 8. सूक्ष्मनिगोद वर्गणा - उत्कृष्ट ध्रुवशून्य वर्गणा से एक अधिक परमाणु के स्कंध रूप जघन्य से उत्कृष्ट सूक्ष्म निगोद वर्गणा होती है। इस वर्गणा का स्वरूप सामान्यतः बादर निगोद वर्गणा के अनुरूप समझना चाहिए। 10. महास्कंध वर्गणा - जो वर्गणाएं विस्रसा परिणाम से टंक, शिखर और पर्वतादि बड़े-बड़े स्कंधों का आश्रय लेकर रही हुई है, उन्हे महास्कंध वर्गणा कहते हैं। उत्कृष्ट ध्रुव शून्यवर्गणा से एक अधिक परमाणु वाली जघन्य अचित्त महास्कंध वर्गणा होती है। एक-एक वृद्धि से यावत् उत्कृष्ट महास्कंध वर्गणा होती है।195 192. उक्कोसपए सियाण भंते! खंधाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता! से केणतुणं? गोयमा! उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ये, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते वण्णादि अट्ठाफासपज्जवेहिं य धट्ठाणवडिते। - युवाचार्य मधुकरमुनि, प्रज्ञापनासूत्र, भाग 1, पद 5, पृ. 435 193, पंचसंग्रह, (बंधनकरण प्ररूपणा अधिकार) भाग-6, पृ. 53-54 194. पंचसंग्रह, पृ. 54-55 195. पंचसंग्रह, पृ. 57
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy