SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [321] अवधि त्रिसमयाहारक सूक्ष्मनिगोद के तुल्य होने से उत्सेधांगुल से भी समझ सकते हैं, क्योंकि जीवों की अवगाहना उत्सेधांगुल से नापी जाती है। लेकिन काल के साथ तुलना में तो प्रमाणांगुल ही समझना चाहिए। अतः अवधिज्ञान का जो विषय क्षेत्र है उसे भी प्रमाणांगुल से ही ग्रहण करना चाहिए। दिगम्बर परम्परा में अवधि के कछ विषय क्षेत्र को उत्सेध अंगल से गिनते हैं और कुछ क्षेत्र को प्रमाणांगुल से। इसका वर्णन इस प्रकार है कि जधन्य अवधिज्ञान का विषय क्षेत्र जो जधन्य अवगाहना के समान घनांगुल के असंख्यातवें भाग मात्र कहा है, जो उत्सेधांगुल (व्यवहार अंगुल) की अपेक्षा से है, प्रमाण अंगुल या आत्मांगुल की अपेक्षा नहीं, क्योंकि सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना प्रमाण जघन्य देशावधि का क्षेत्र है और परमागम में यह नियम कहा है कि शरीर, घर, ग्राम, नगर आदि का प्रमाण उत्सेधांगुल से ही मापा जाता है। इसलिए व्यवहार अंगुल का ही आश्रय लिया है। गोम्मटसार (गाथा 404 आदि) में अवधि के क्षेत्र और काल को लेकर उन्नीस काण्डकों में अंगुल का प्रमाण प्रमाणांगुल से नापा है और उससे आगे जो भी हस्त, गव्यूति, योजन, भरत आदि प्रमाण क्षेत्र कहा है, वह सब प्रमाणांगुल से ही लिया है। लेकिन देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्य के उत्सेध (ऊँचाई) के कथन के अतिरिक्त अन्यत्र सभी जगह प्रमाण अंगुल का ग्रहण करना चाहिए। ऐसा गुरु का उपदेश है।37 उपर्युक्त वर्णन के आधार पर अवधिज्ञान के क्षेत्र का नाप प्रमाणांगुल से ही लेना ज्यादा उचित है। अंगुल के तीन प्रकार के होते हैं -1. आत्मांगुल 2. उत्सेधांगुल और 3. प्रमाणांगुल। इनके स्वरूप का वर्णन द्वितीय अध्याय (ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय) के प्रसंग पर किया जा चुका है।38 द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की वृद्धि अवधिज्ञान से द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव का भी संबंध होता है अथवा वर्धमान और हीयमान प्रकार के अविधज्ञान में द्रव्यादि से वृद्धि-हानि होती है। आवश्यकनियुक्ति, नंदीसूत्र एवं विशेषावश्यकभाष्य में इस दृष्टि से सूक्ष्म प्रतिपादन हुआ है। आवश्यकनियुक्ति आदि के अनुसार अवधिज्ञान की कालवृद्धि के साथ द्रव्य, क्षेत्र और भाव की वृद्धि भी निश्चित होती है। क्षेत्र की वृद्धि में काल की वृद्धि की भजना है, जबकि द्रव्य और पर्याय की वृद्धि में क्षेत्र और काल की भजना है क्योंकि काल आदि परस्पर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होते हैं।39 अर्थात् काल सूक्ष्म होता है, उससे क्षेत्र सूक्ष्मतर होता है, क्योंकि एक अंगुल श्रेणी में जितने प्रदेश होते हैं, वे प्रदेश असंख्यात अवसर्पिणियों के समय के बराबर होते हैं। क्षेत्र से भी द्रव्य सूक्ष्म होता है, क्योंकि क्षेत्र के एक-एक आकाश प्रदेश पर अनंत प्रदेशी स्कंध द्रव्य रहे हुए हैं। द्रव्य से भाव और अधिक सूक्ष्म होता है, क्योंकि उन स्कंधों में अनंत परमाणु हैं, प्रत्येक परमाणु में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से अनंत पर्याय हैं।40 136. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) भाग 2 गाथा 381, पृ. 626 137. षट्खण्डागम पृ.13 सूत्र 5.5.59 गाथा 4, पृ. 304 138. द्रव्यष्ट, द्वितीय अध्याय (ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय) पृ. 82-83 139. काले चउण्ह वुड्डी, कालो भइयव्वु खेत्तवुड्डीए। वुड्डिए दव्व-पज्जव, भइयव्वा खेत्त-काला उ।। -युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र 20 पृ. 38, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 617, षट्खण्डागम पु. 13, सूत्र 5.5.59 गाथा 8, पृ. 309 140. सुहूमो य होई कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खेत्तं ।। अंगुलसेढीमित्ते ओस्सप्पिणिओ असंखेज्जा।। - आवश्यक नियुक्ति गाथा 36, युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र 21 पृ. 38, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 621
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy