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________________ [320] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन ऊपर चार्ट में क्षेत्र के अनुसार काल बताया है। उदाहरण के लिए भरत क्षेत्र को जानने वाला काल से अर्धमास के काल को जानता है अर्थात् उस क्षेत्र में रहे हुए रूपी पदार्थ की अर्धमास जितनी भूत की और अर्धमास जितनी भविष्य की पर्याय को जानता है। भरतक्षेत्र कहने से मात्र भरत क्षेत्र ही नहीं समझ कर भरतक्षेत्र जितनी लम्बाई और चौडाई वाले क्षेत्र को समझना चाहिए। इस कथन को सभी क्षेत्र और काल के साथ जोड़ना चाहिए। ऐसा ही वर्णन नंदीसूत्र आदि आगमों में भी प्राप्त होता है। लेकिन आवश्यकनियुक्ति में वर्णित काल से षट्खण्डागम में वर्णित काल में चार भिन्नता है जिनका चार्ट में उल्लेख किया गया है। गोम्मटसार32 में भी षट्खण्डागम जैसा ही वर्णन है। यहाँ क्षेत्र और काल को देखने के लिए जो कथन है कि वह उपचार से है, क्योंकि क्षेत्र और काल ये दोनों अमूर्तिक हैं। इन्हें अवधिज्ञानी नहीं जान सकता है, क्योंकि अवधिज्ञान का विषय रूपी पदार्थ है, इसलिए यहाँ ऐसा उपचार किया जाता है कि अवधिज्ञानी क्षेत्र और काल को इतने-इतने रूप में जानता है अर्थात् उतने क्षेत्र और काल में रहे हुए रूपी पदार्थों को जानता है। इसी प्रकार वर्णित क्षेत्र में जो जो काल बताया है वह समझ लेना चाहिए। यहाँ जो काल में पृथक्त्व शब्द आया है, सिद्धांतकार उसमें दो से नौ पर्यंत की संख्या का ग्रहण करते हैं।33 अवधिज्ञानी उपर्युक्त जितने क्षेत्र को देखता है उसके साथ इतने काल में रहे हुए रूपी द्रव्य के भूत और भविष्य को जानता है। वर्णन चार्ट के अनुसार जानना। प्रश्न - अवधिज्ञानी जब क्षेत्र से भरत-क्षेत्र प्रमाण पुद्गलों को जानते और देखते हैं, तब काल से 15 दिन पर्यंत की पुद्गल-पर्याय को जानते और देखते हैं, सो यह पन्द्रह दिन अतीत के या भविष्यत् के या साढ़े सात दिन अतीत के और साढ़े सात अनागत के, यह किस प्रकार है? उत्तर - सम्पूर्ण भरत-क्षेत्र प्रमाण अवधि वाले के जो काल मर्यादा बतलाई है, सो पन्द्रह दिन ही अतीतकाल के तथा पन्द्रह दिन ही अनागत काल के समझना चाहिये। ऐसा खुलासा नंदी सूत्र की टीका में है। इस प्रकार जहाँ-जहाँ अवधिज्ञान की जितनी-जितनी मर्यादा बतलाई है वहाँ उतना ही भूतकाल तथा उतना ही भविष्यत् काल समझ लेना चाहिये। प्रश्न - पूर्व-पश्चात् पर्याय रूपी होते हुए भी वह नष्ट होने के बाद पुन: उत्पन्न नहीं होती है, तो फिर अविधज्ञानी भूत-भविष्य की पर्याय को जानता है? उत्तर - पूर्व-पश्चात् पर्याय नष्ट होने के बाद पुनः उत्पन्न नहीं होती है तो भी अवधिज्ञानी वर्तमान पर्याय के माध्यम से उन पर्यायों को जान सकते हैं। अवधि से भूत-भविष्य काल में होने वाले रूपी द्रव्यों की पर्यायें वर्तमान समय में दृष्टिगोचर हो जाती है। अवधिज्ञान के क्षेत्र का नाप अवधिज्ञान के इस क्षेत्र का नाप कौनसे अंगुल से करना, इसके लिए दोनों परम्पराओं में मतभेद हैं। श्वेताम्बर परम्परा में अवधिज्ञान का क्षेत्र प्रमाणांगुल से नापा जाता है। अवधिज्ञान के विषय के लिए 'अंगुलमावलियाणं 34' में अंगुल शब्द से प्रमाण अंगुल का ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि मलयगिरि के अनुसार "अंगुलमिह क्षेत्राधिकारात् प्रमाणांगुलमभिगृह्यते, अन्ये त्वाहुःअवध्यधिकारादुत्सेधाङलमिति।"135 साधारणतया क्षेत्र विषयक होने से अवधि का क्षेत्र प्रमाणांगुल से ही गिनना चाहिए क्योंकि आगे जो भरतादि क्षेत्र बताया है, वह प्रमाणांगुल से ही है। जघन्य 132. गोम्मटसार (जीवकांड) भाग 2 गाथा 404-407 133. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 608-616 134. नंदीसूत्र, पृ. 37 135. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 93
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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