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________________ चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान [279] दिगम्बर साहित्य में पूर्व को दृष्टिवाद का चौथा भेद माना गया है। चौदहपूर्व के नाम दोनों परम्पराओं में लगभग समान हैं। जहाँ नामान्तर है वहाँ कोष्ठक में दिगम्बर साहित्य में मान्य नाम दिया गया है। चौदह पूर्वो की विषयवस्तु नंदीसूत्र87 और तत्त्वार्थराजवार्तिक388 में पूर्व के भेदों का लक्षण इस प्रकार से दिया है। इसमें (अ) श्वेताम्बर परम्परा का सूचक है तथा (ब) दिगम्बर परम्परा का सूचक है। 1. उत्पाद पूर्व (अ) सर्व द्रव्यों के और सर्व पर्यायों के उत्पाद (उत्पत्ति) उपलक्षण से विनाश तथा ध्रुवत्व का विस्तार से कथन था। (ब) द्रव्य के उत्पाद-व्यय आदि अनेक धर्मों का पूरक उत्पादपूर्व है। जीवादि द्रव्यों के नाना नय विषयक क्रम और युगपत् होने वाले तीन काल के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप नौ धर्म होते हैं। अतः उन धर्मरूप परिणत द्रव्य भी नौ प्रकार के होते हैं, इनका जिसमें वर्णन है, वह उत्पाद पूर्व है। अकलंक के अनुसार काल पुद्गल जीव आदि के जहाँ जैसे पर्याय उत्पन्न हो, उनका उसी रूप से वर्णन करना उत्पाद पूर्व है। 2. अग्रायणीय पूर्व (अ) इसमें सर्व द्रव्यों सर्व पर्यायों और सर्व जीव विशेषों के परिणाम और अल्प-बहुत्व का विस्तृत ज्ञान था। (ब) अग्र अर्थात् द्वादशांग में प्रधानभूत वस्तु का अयन अर्थात् ज्ञान अग्रायण है। अथवा जिन क्रियावाद आदि में किस रूप से कौन-कौन क्रियावाद आदि होते हैं, ऐसी प्रक्रिया का नाम अग्रायणी है। जिसमें आचार आदि बारह अंगों के समवाय और विषय का वर्णन हो वह अग्रायणीय पूर्व है। इसमें सात सौ सुनयों, दुर्नयों, पांच अस्तिकाय, छह द्रव्य, सात तत्त्व, नौ पदार्थ आदि का वर्णन मिलता है। 3. वीर्यप्रवाद पूर्व (अ) संसारी जीवों के वीर्य का तथा उपलक्षण से सिद्धों के अवीर्य का एवं धर्मास्तिकायादि की गति-सहायादि शक्तियों का विस्तार से कथन था। (ब) वीर्य अर्थात् जीवादि वस्तु की सामर्थ्य का अनुप्रवाद अर्थ का वर्णन जिसमें होता है, वह वीर्यानुप्रवाद नामक तीसरा पूर्व है। वह अपने वीर्य, पराये वीर्य. उभयवीर्य, क्षेत्रवीर्य, काल वीर्य, भाववीर्य, तपवीर्य आदि समस्त द्रव्य-गुण-पर्यायों के वीर्य का कथन करता है। अकलंक के अनुसार छद्मस्थ (अल्पज्ञानी) और केवलियों की शक्ति, सुरेन्द्र, दैत्येन्द्र, नरेन्द्र, चक्रवर्ती और बलदेवों की ऋद्धि का जहां पर वर्णन हो एवं सम्यक्त्व के लक्षण का जहां पर कथन हो वह वीर्यप्रवाद है। 4. अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व (अ) लोक में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएँ हैं तथा गधे का सींग आदि जो वस्तुएँ नहीं हैं, इसी प्रकार जिन गुण पर्यायों की अस्ति है तथा नास्ति है, उनका इसमें विस्तार से कथन था। (ब) अस्ति-नास्ति आदि धर्मों का प्रवाद अर्थात् प्ररूपण जिसमें है, वह अस्ति-नास्ति प्रवाद नामक चतुर्थ पूर्व है। जीवादि वस्तु स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव की अपेक्षा स्यादस्ति है। परद्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा स्यात् नास्ति है। इस प्रकार सप्तभंगी रूप है। अकलंक के अनुसार पांचों अस्तिकायों के विषय पदार्थ और नयों के विषय पदार्थों का जहाँ पर अनेक पर्यायों के द्वारा यह है, यह नहीं है, इत्यादि रूप से वर्णन हो वह अस्तिनास्तिप्रवाद है। अथवा पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा अथवा द्रव्यार्थिक पयायार्थिक दोनों नयों की अपेक्षा मुख्य और गौण रूप से जहाँ पर छहो द्रव्यों के स्व और पर पर्यायों के भाव और अभाव का निरूपण हो वह अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व है। 386. सवार्थसिद्धि 1.20, राजवार्तिक 1.20.12, धवला, पु. 1, सू. 1.1.2, पु. 114-122, धवला पु. १, सू. 4.1.40, पृ. 212-224, गोम्मटसार जीवकांड गाथा 365-366 पृ. 604 से 612 387. नंदीसूत्र पृ. 264-265 388. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1.20.12
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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