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________________ चर्तुथ अध्याय विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान पांच ज्ञानों में दूसरा ज्ञान श्रुतज्ञान है। श्रुतज्ञान सम्पूर्ण चारित्र का आधारभूत है। श्रुत शब्द 'श्रु' (श्रवणे) धातु से बना है, जिसका व्युत्पत्तिजन्य अर्थ सुनना है और विशिष्ट अर्थ आप्त के वचन सुनकर उसके अनुसार शब्दानुविद्ध ज्ञान होना श्रुतज्ञान है। श्रवण के आधार पर ही वैदिक परम्परा में वेदों को श्रुति, जैन परम्परा के आगमों को श्रुत और बौद्ध परम्परा में त्रिपटक को श्रुत, आगम अथवा पालि कहा जाता है। यहाँ सुनने का अर्थ है - रूपी अरूपी पदार्थ को मतिज्ञान से ग्रहण कर या स्मरण कर उसे और उसके वाचक शब्द को, उस वाच्य अर्थ और उसके वाचक शब्द में जो परस्पर वाच्य-वाचक संबंध रहा हुआ है, उसकी पर्यालोचना पूर्वक शब्द उल्लेख सहित जानना श्रुतज्ञान है।' जैसे 'घट' पदार्थ के वाचक शब्द 'घट' शब्द को सुन कर, 'घट' पदार्थ को जानना 'घट' विषयक श्रुतज्ञान है। अथवा सामान्यतया गुरु के शब्द सुनने से या ग्रंथ पढ़ने से अथवा उनमें उपयोग लगाने से जो ज्ञान होता है, उसे-'श्रुतज्ञान' कहते हैं। इसका विस्तार से वर्णन निम्न प्रकार से है। आगमों में श्रुतशब्द का उपयोग - जैनागमों में श्रुत शब्द 'सुनना 'शास्त्र' 'आगम' 'श्रुतज्ञान और मिथ्याश्रुत के लिए जैनागमों में पापश्रुत का भी प्रयोग हुआ है। आदि अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। इसके अलावा आगमों में प्रयुक्त 'बहुस्सुया' (बहुश्रुत) 'अनुश्रुत 'महाश्रुत10 " श्रुतधर्म11 'सूत्रश्रुत'12 'अर्थश्रुत13 आदि शब्द श्रुत के साथ संबंध रखते हैं। श्रुतज्ञान का लक्षण श्रुतज्ञान श्रोत्रेन्द्रिय से सम्बन्धित है अर्थात् जो दिया लिया जाता है, बोला जाता है, शब्दों से जो जाना जाता है, वाच्य वाचक भाव से जो जाना जाता है, वह श्रुतज्ञान है। श्वेताम्बर आचायों की दृष्टि में श्रुतज्ञान का लक्षण - उमास्वाति (तृतीय शती) ने तत्त्वार्थभाष्य उल्लेख किया है कि श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है। श्रुत, आप्तवचन, आगम, उपदेश, ऐतिह्य, आम्नाय प्रवचन और जिनवचन ये शब्द एक ही अर्थ के वाचक है। 1. शृणोति वाच्यवाचकभावपुरस्सरं श्रवणविषयेन शब्देन सह संस्पृष्टमर्थं परिच्छिनत्त्यात्मा येन परिणामविशेषेण स परिणामविशेषः श्रुतम्। - मलयगिरि वृत्ति, पृ. 140 2. पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 205 3. आचारांगसूत्र 4.1.8, सूयगडांगसूत्र 1.15.16, भगवतीसूत्र 3.7.1 4. उत्तराध्ययनसूत्र अ. 17 गाथा 2,4 5. भगवतीसूत्र 1.1.3, 15.1, स्थानांगसूत्र 2.1.24 6. सूयगडांगसूत्र 1.2.2.25, 31, 16.2, 1.15.16, भगवतीसूत्र 8.2.6, स्थानांगसूत्र 5.3.12 7. सूयगडांगसूत्र 1.3.3.3 8. भगवती सूत्र श. 2 उ. 5, 15.1.15, उत्तराध्ययनसूत्र अ.5 गाथा 29, अ. 11 गाथा 15 9. उत्तराध्ययनसूत्र अ. 5 गाथा 18 10. उत्तराध्ययनसूत्र अ. 20 गाथा 53 11. स्थानांगसूत्र 2.4.14 12. स्थानांगसूत्र 2.1.25 13. सूयगडांगसूत्र 2.2.10, स्थानांगसूत्र 8.14, समवायांगसूत्र 28 14. श्रुतज्ञानं मतिज्ञानपूर्वकं भवति। श्रुतमाप्तवचनं आगम उपदेश ऐतिह्यमाम्नायः प्रवचनं जिनवचनमित्यनर्थान्तरम्। - सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र, 1.20 पृ. 88
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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