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________________ तृतीय अध्याय विशेषावश्यकभाष्य में मतिज्ञान [183] तत्त्वार्थभाष्य में अपाय, अपगम, अपनोद, अपव्याध, अपेत, अपगत, अपविद्ध और अपनुति इन आठ शब्दों का उल्लेख मिलता है 25 लेकिन इनकी परिभाषा नहीं मिलती है। नंदीसूत्र और तत्त्वार्थसूत्र में एक भी भेद का नाम समान नहीं है। षट्खण्डागम में अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति, आमुंडा और प्रत्यामुंडा इन छह शब्दों का उल्लेख मिलता है [ षट्खण्डागम और नंदीसूत्र के उपर्युक्त भेदों में बुद्धि भेद समान है। तत्त्वार्थसूत्र और षट्खण्डागम में एक भी भेद समान नहीं है। धवला टीका के अनुसार मीमांसित अर्थ का निश्चय होना अवाय है, अन्वेषित अर्थ के निश्चय का हेतु व्यवसाय है, ऊहित अर्थ को जाना बुद्धि है, विशेषरूप से जिसके द्वारा तर्कसंगत अर्थ को जाना जाता है, वह विज्ञप्ति है, वितर्कित अर्थ को संकोचित करना आमुंडा है और मीमांसित अर्थ को अलग-अलग संकोचित करना प्रत्यामुड़ा है 2 प्रत्यामुंडा यह अभ्रम है नंदी के टीकाकारों के अनुसार आवर्तनता आदि पांचों भेद ईहा के बाद क्रमिक विचार प्रक्रिया के सूचक है, जबकि धवला टीका में प्रदत्त अर्थ के अनुसार ऐसा प्रतीत नहीं होता है। धारणा का स्वरूप है 127 मतिज्ञान का चौथा भेद धारणा है। इसका उल्लेख निम्न प्रकार से है । । 26 आवश्यक नियुक्ति के अनुसार धरणं पुण धारणं बेंति' अर्थात् धारण करना धारणा है - ' उमास्वाति ने कहा है कि स्वप्रतिपत्ति के अनुसार मति का अवस्थान और अवधारण धारणा जिनभद्रगणि के अनुसार अपाय के अनन्तर उस निर्णीत अर्थ का नाश (च्युति) अविच्युति, तदावरण कर्म के क्षयोपशम से वासना रूप में अर्थ का उपयोग और कालान्तर में पुनः उसका स्मृति हो जाना अर्थात् अविच्युति, वासना और स्मृति रूप जो होता है वही धारणा है 1428 वीरसेनाचार्य ने धवलाटीका में उल्लेख किया है कि अवाय के द्वारा जाने हुए पदार्थ के कालान्तर में विस्मरण नहीं होने का कारणभूत ज्ञान धारणा है। 129 ' वादिदेवसूरि के अनुसार "स एव दृढतमावस्थापन्नो धारणा ५०० अर्थात् अवाय ज्ञान जब अत्यन्त दृढ़ हो जाता है तब वही अवाय ज्ञान, धारणा कहलाता है। धारणा का अर्थ संस्कार है। हृदय-पटल पर यह ज्ञान इस प्रकार अंकित हो जाता है कि कालान्तर में भी वह जागृत हो सकता है। इसी ज्ञान से स्मरण होता है। मलधारी हेमचन्द्र ने बृहद्वृत्ति में कहा है कि निश्चित रूप से ज्ञात वस्तु की अविच्युति आदि रूप से धारण करना धारणा कहलाती है पदार्थों की धृति, या उनका धरण होता है, अर्थात् अपाय द्वारा निश्चित की गई वस्तु के ही अविच्छिन्न रूप से स्मृति - वासना रूप धारण को ही धारणा कहते हैं। 132 423. अपायोऽपगमः, अपनोदः अपव्याधः अपेतमपगतमपविद्धमपनुत्यमित्यनर्थान्तरम् तत्वार्थभाष्य 1.15 पृ. 82. 424. षट्खण्डागम, पु. 13., सू 5.5.39 पृ. 243 426. आवश्यकिनिर्युक्ति गाथा 3 425. धवला पु. 13 पृ. 243 427. धारणा प्रतिपत्तिर्यथास्वं मत्यवस्थानमवधारणं च । तत्त्वार्थभाष्य 1.15 पृ. 82 428. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 291 430. प्रमाणनयतत्त्वालोक, सूत्र 2.10 431. निश्चितस्यैव वस्तुनोऽविच्युत्यादिरूपेण धरणं धारणा । मलधारी हेमचन्द्र बृहद्वृत्ति, गाथा 178, पृ. 80 432. मलधारी हेमचन्द्र बृहद्वृत्ति, गाथा 179, पृ. 80 429. धवला पु. 13, सू. 5.5.23 पृ. 218
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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