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________________ [182] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन 3. अवाय ईहा की सर्वथा निवृत्ति हो जाना और ज्ञेय वस्तु अवधारण के योग्य हो जाना अवाय है। जैसे स्थाणु के प्रति यह निर्णय होना कि 'यह स्थाणु है।' यह अवाय की तीसरी अवस्था 4. बुद्धि भगवती सूत्र में मति और बुद्धि का प्रयोग एक साथ हुआ है, अतः उस काल में दोनों का प्रयोग अलग-अलग अर्थ में होता होगा। 14 नंदीसूत्र और षट्खण्डागम में बुद्धि को अवाय के पर्यायवाची के रूप में स्वीकार किया गया है जिनभद्रगणी ने आभिनिबोध मति, बुद्धि और प्रज्ञा को वचन - पर्याय के रूप में स्वीकार किया है। 16 जिनदासगणि के अनुसार जब बुद्धि मनोद्रव्य का अनुसरण करे तब वह मति रूप होती है। इसलिए बुद्धि अवग्रह और मति ईहा रूप है। जबकि हरिभद्र के अनुसार बुद्धि अवग्रह और ईहा रूप तथा मति अवाय और धारणा रूप होती है 17 नंदीसूत्र में अवाय के रूप में प्रयुक्त बुद्धि का अर्थ स्पष्टतर बोध किया है। 18 इस प्रकार बुद्धि मतिज्ञान के अवान्तर भेद के रूप में स्थापित है । निर्णय किये हुए पदार्थ को स्थिरता पूर्वक बार-बार स्पष्ट रूप में जानना, बुद्धि है। जैसे स्थाणु को यों जानना कि-'यह स्थाणु ही है।' यह अवाय की चौथी अवस्था है। 19 5. विज्ञान निर्णय किये हुए पदार्थ का विशिष्ट ज्ञान होना, 'विज्ञान' है। जैसे- उक्त स्थाणु के प्रति यह ज्ञान होना कि यह अवश्यमेव स्थाणु ही है। यह अवाय की पांचवी अवस्था है। विज्ञान में अनुभव ज्ञान भी समझना चाहिए। जैसे कि अमुक नौकरी के लिए अमुक योग्यता के साथ इतने वर्ष के अनुभव की भी आवश्यकता होती है। वर्षों तक नहीं फेरने पर भी अनुभवज्ञान विस्मृत नहीं होता है। जैसे वृक्ष की ऊंचाई जानकर बीज की श्रेष्ठता जानना । जिनदासगणि ने विज्ञान का अर्थ अवधारित ज्ञान किया है 120 हरिभद्र के अनुसार यह तीव्रतर धारणा का कारण है, अतः इससे विज्ञान अवाय का पर्याय घटित नहीं होता है, इसलिए मलयगिरि ने इसका अर्थ तीव्रतर धारणा का हेतु किया है धवला टीका के अनुसार यह मीमांसित अर्थ का संकोच है 22 अवाय में हुए . निश्चय ज्ञान के उपर्युक्त पांच भाग करें तो वह क्रमशः उत्तरोत्तर स्पष्ट, स्पष्टतर और स्पष्टतम बढ़ता ही जाता है। अवग्रह और ईहा दर्शनोपयोग रूप होने से अनाकारोपयोग में तथा अवाय और धारणा ज्ञानोपयोग रूप होने से साकारोपयोग में गर्भित हो जाते हैं। पदार्थों का सम्यक् निर्णय बुद्धि और विज्ञान से ही होता है। नंदी के टीकाकारों के अनुसार आवर्तनता और प्रत्यावर्तनता दोनों ज्ञान ईहा और अपाय के बीच की कड़ी हैं। दोनों में ईहा का सद्भाव पूर्ण रूप से नष्ट नहीं हुआ है और अवाय का सद्भाव पूर्ण रूप से उत्पन्न नहीं हुआ है। इन दोनों में यह भेद है कि आवर्तनता ईहा के और प्रत्यावर्तना अवाय के अधिक नजदीक है। 414... अप्पणो साभाविएणं मतिपुचएवं बुद्धिविणाणं तस्य सुचिणस्स अत्योग्गहणं.. भगवतीसूत्र, भाग 3, श. 11.11 पू. 75 415. नंदीसूत्र, पृ. 132, षट्खण्डागम 5.5.39 416. विशेषावश्यक भाष्य गाथा 398 417. सा बुद्धिः अवग्रहमात्रम, उत्तरत्र इहादिविकपार सव्वं मती तत्रावग्रहे हेतु बुद्धिः, अपावधारणे मतिः हारिभद्रीय नंदीवृत्ति नंदीचूर्णि 418. हारीभद्रीय पृ.60, मलयगिरि पृ. 176 419. नंदीचूणि पृ. 52, हारिभद्रीय पृ. 53, मलयगिरि पृ. 179 420. तम्मि चेवावधारितमत्थे विसेसे पेरकतो अवधारयतो य विण्णाणे । नंदीचूर्णि पृ. 60 421. विशिष्टं ज्ञानं विज्ञानं क्षयोपशमविशेषादवधारितार्थविषयमेव तीव्रतरधारणाकारणमित्यर्थः । - हारिभद्रीय पृ. 60, मलयगिरि पृ. 179 422. षट्खण्डागम, पु. 13, सू. 5.5.39, पृ. 243
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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