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________________ 131 131 132 133 134 135 136 136 136 * द्रव्यश्रुतपूर्वक मति * भावश्रुत से उत्पन्न द्रव्यश्रुत मतिपूर्वक नहीं भेद (विभाग) की अपेक्षा से मति-श्रुत में अन्तर इन्द्रिय की अपेक्षा से मति-श्रुत में अन्तर ★ द्रव्यश्रुत और भावश्रुत का स्वरूप ★ द्रव्यश्रुत-भावश्रुत और मतिज्ञान का संबंध * श्रुतज्ञान शब्द रूप तथा मतिज्ञान उभय रूप * क्या मतिज्ञान श्रुत परिणत होता है? कारण-कार्य से मति-श्रुत में अन्तर अनक्षर-अक्षर से मति-श्रुत में अन्तर मूक-अमूक से मति-श्रुत में अन्तर विषय ग्रहण काल की अपेक्षा दोनों में भेद इन्द्रिय एवं मन की निमित्तता के आधार पर दोनों में भेद श्रुतज्ञान में इन्द्रिय और मन कारण नहीं क्या मतिज्ञान द्रव्यश्रुत रूप है? अभिलाप्य और अनभिलाप्य का विचार मति और श्रुत में अभेद मतिज्ञान के भेद नंदीसूत्र और विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार मतिज्ञान के भेद षट्खण्डागम के अनुसार मतिज्ञान के भेद तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार मतिज्ञान के भेद श्रुतनिश्रित एवं अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भेद औत्पातिकी वैनयिकी कार्मिकी पारिणामिकी . बुद्धि का क्रम श्रतनिश्रित मतिज्ञान के भेद अवग्रह का स्वरुप अवग्रह के भेद और उनका स्वरुप व्यंजनावग्रह का स्वरूप दृष्टांत द्वारा व्यंजनावग्रह का स्वरूप विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार व्यंजन के अर्थ व्यंजन के तीन अर्थों का अन्य आचार्यों के द्वारा समर्थन व्यंजनावग्रह के सम्बन्ध में दो मान्यताएं व्यंजनावग्रह का विषय एवं भेद अर्थावग्रह का स्वरूप अर्थावग्रह के भेद 137 138 138 139 139 139 140 140 142 142 143 144 144 146 146 147 148 149 149 परिणामका 150 151 153 153 154 154 155 155 157 157 158
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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