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________________ द्वितीय अध्याय - ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय [77] लब्धि और उपयोग भावेन्द्रिय का स्वरूप जिनभद्रगणि के अनुसार जीव के सभी आत्मप्रदेशों में इन्द्रियों के आवारक कर्म (इन्द्रियज्ञानावरण) का जो क्षयोपशम है, वह लब्धि-इन्द्रिय है तथा 'जो सविसयवावारो सो उवओगो' अर्थात् श्रोत्र आदि इन्द्रियों को अपने-अपने विषय में जो प्रवृत्ति होती है, वह उपयोग इन्द्रिय है।108 जिनदासगणि इसको स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि घर के एक कोने में रखा प्रज्वलित दीपक पूरे घर को प्रकाश से आलोकित करता है इसी प्रकार द्रव्येन्द्रिय में अवस्थित आत्मप्रदेशों का क्षयोपशम होने पर भी उपयोग की दृष्टि से सभी आत्मप्रदेशों से विषय का बोध होता है।109 विद्यानंद110 ने लब्धि और उपयोग का अर्थ निम्न प्रकार से किया है -'लब्धिस्वभावानि तावद् भावेन्द्रियाणि स्वार्थसंविदो योग्यत्वादात्मनः प्रतिपद्यन्त' जीव के विषय के ग्रहण करने के सामर्थ्य को लब्धि कहते हैं। 'उपयोगस्वभावानि पुनः स्वार्थसंविदो व्यापृतत्वान्निश्चिन्वन्ति।' अर्थात् विषय को ग्रहण करने की प्रवृत्ति उपयोग है। वीरसेनाचार्य ने धवला में शंका उठाई है कि उपयोग इन्द्रियों का फल है, क्योंकि उसकी उत्पत्ति इन्द्रियों से होती है, इसलिए उपयोग को इन्द्रिय कहना उचित नहीं है। इसका समाधान करते हुए वे कहते हैं कि कारण में रहने वाले धर्म की कार्य में अनुवृत्ति होती है। जैसे कि घट के आकार से परिणत हुए ज्ञान को घट कहा जाता है, उसी प्रकार इन्द्रियों से उत्पन्न हुए उपयोग को भी इन्द्रिय कहा जाता है। इन्द्रिय (श्रोत्रादि पांच इन्द्रियां) द्रव्येन्द्रिय भावेन्द्रिय निर्वृति उपकरण लब्धि उपयोग बाह्य निर्वृति आभ्यन्तर निर्वृति इन्द्रियों के प्रभेदों की प्राप्ति का क्रम जिनभद्रगणि कहते हैं कि सर्वप्रथम इन्द्रियावरणीयक्षयोपशम रूप लब्धि से इन्द्रिय प्राप्त होती है, उसके बाद बाह्यनिर्वृत्ति इन्द्रिय की प्राप्ति होती है, उसके अनन्तर आभ्यंतरनिर्वृत्ति की शक्ति रूप उपकरणेन्द्रिय की प्राप्ति होती है, सबसे अन्त में उपयोग इन्द्रिय होती है। 12 जीव में इंद्रिय के अधिष्ठान, शक्ति तथा व्यापार का मूल लब्धि इंदिय है। उसके अभाव में निर्वृत्ति, उपकरण और उपयोग नहीं होता है। लब्धि के पश्चात् द्वितीय स्थान निर्वृत्ति का है। उसके होने पर उपकरण और उपकरण के होने पर उपयोग होता है। उपयोग के बिना उपकरण, उपकरण के बिना निर्वृत्ति, निर्वृत्ति के बिना लब्धि हो सकती है, परन्तु लब्धि के बिना निर्वृत्ति और निर्वृत्ति के बिना उपकरण तथा उपकरण के बिना उपयोग नहीं हो सकता है। 108. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 2997-2998 109. नंदीचूर्णि, पृ. 24 110. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, 2.18.1 111. षट्खण्डागम, पु.1, सू. 1.1.33 पृ. 237 112. लाभक्कमे उ लद्धी निव्वुत्त-वगरण उवओगो य। दव्विंदिय-भाविंदियसामण्णाओ कओ भिण्णो।-विशेषा० भाष्य गाथा 3003
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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