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________________ (४७) द्वादश नवका यावदष्टोत्तरशतं भवेत् । एवमायुषि सम्पूर्ण नवा वार्ता' भवन्ति हि ॥ २३७ ॥ मेषसंक्रान्तिकाले च वर्षे पूर्णेऽखिलेऽपि हि । धनानुजादयो भावाः पुनर्ल श्री भवन्त्यमी ॥ २३८ ॥ जन्मका लगताः खेटाः सन्तिष्ठन्ति तथैव हि । मुषहासंज्ञितं लग्नं वर्षलनं भवेदिदम् ॥ २३९ ॥ मेसंक्रान्तिकाले हि वर्ष लग्नं प्रवर्तते । जन्मकालग्रहैरेव पुनर्वर्षफलं वदेत् ॥ २४०॥ सर्वे तन्वादयो भावाः शुभयुक्ता बलावहाः " । क्रूरयुक्ताश्च ते दृष्टा विपरीत फलप्रदाः || २४१|| 4 उदयात्पञ्चमं यावदवस्था प्रथमा समा । पञ्च मानवमं यावदवस्था हि द्वितीयका || २४२ || 1 इस प्रकार बारह भावों को बार करके १०८ वर्ष होते हैं । सम्पूर्ण आयु में बारह भावों के नौ चक्र होते हैं ||२३७।। मैत्र संक्रान्ति के समय वर्षपूर्ति हो जाने पर फिर धन, भ्रातृ आदि भाव और लग्न बन जाते हैं ||२३८ || जन्म काल में जैसे ग्रह स्थित होते हैं । वैसे ही पहले वर्ष में वर्षकुण्ड में भी होते हैं और वर्ष लग्न ही मुथहा कहलाते हैं ||२३६|| मेष संक्रान्ति काल में जिसका वर्ष बदलता है उसको उसी काल का लग्न तथा ग्रह से वर्षफल कहा जाता है || २४०|| सभी तनु आदि भाव शुभ ग्रहों से युत हों तो बलिष्ठ होकर शुभ फल देते हैं । वे ही यदि पाप ग्रहों से युक्त देखे जाते हों तो विपरीत फलदायक होते हैं || २४१ ॥ लग से पचम भाव तक प्रथम अवस्था कहलाती है । पञ्चम भाव से नवम भाव तक दूसरी अवस्था होती है ॥२४२॥ 1. नत्रावर्ता for नवा वार्ता A, Bh. 2. भवन्ति ते for भवन्त्यमी A. 3. वर्षल मं is missing in the text. 4. च for हि A. 5. शुभा० for बला० A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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