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________________ (४६) पृच्छालग्नेषु सर्वेषु जन्मपत्र्यां विचक्षणैः । केन्द्रस्थग्रहयोगेन फलं वाच्यं मनीषिणा ॥२३॥ आयकेन्द्रग्रहर्जातः पुण्यवान् पुरुषः स्मृतः । अस्तग्रहदेशस्थैर्वा हीनो भवति मूर्तितः ॥२३२॥ कोन वर्षः शुभोऽस्माकमिति प्रश्न समागते । तत्ताजिकानुसारेण कीर्त्यते वर्षलक्षणम् ॥२३॥ जन्मतः प्रथमे लने जन्मकालगतैग्रहैः । वर्ष यावरफलं ज्ञेयं" जन्मपत्र्यां विचक्षणः ॥२३४॥ द्वितीये वत्सरे वाच्यं द्वितीयलमतः फलम् । तृतीये वत्सरे' ज्ञेयं तृतीयादपि लग्नतः ॥२३५।। एवं द्वादश वर्षाणि जन्म द्वादश लग्नतः । जन्मकालगतैरेव ग्रहैर्वाच्यं शुभाशुभम् ॥२३६॥ इस प्रकार जन्मपत्री तथा प्रश्नकुण्डली में भी केन्द्र स्थित ग्रह यदि बली हो तो शुभ अन्यथा विपरीत फल कहना चाहिये ।।२३११।। पाद्यकेन्द्र अर्थात् लग्न और चतुर्थ में स्थित ग्रह से बालक को पुण्यवान कहना चाहिये । सप्रम और दशमस्थ ग्रहों से उससे होन कहना चाहिये ।।२३२॥ कौन मा वष मेरे लिये शुभप्रद है इस प्रकार के प्रश्नों के लिये सानिक के अनुसार वर्षफल कहा जाता है ॥२३३॥ जन्म कालिक लग्न से जिस घर में जो ग्रह स्थित हो उसके अनुसार एक वर्ष तक फल कहना चाहिये ।।२३४॥ इसी प्रकार द्वितीय वर्ष में द्वितीय स्थान से, तृतीय वर्ष में तृतीय स्थान से फलादेश कहना चाहिये ।।२३।। इस प्रकार जन्म लग्न से बारह स्थानों के द्वारा जन्म कालिक प्रहों से बारह वर्ष तक शुभ और अशुभ फल कहना चाहिये ।।२३६।। ___ 1. केन्द्रस्थ for केन्द्रस्था A. 2. केन्द्रगतैः खेटैः for केन्द्र आंत: A. 3. गत for नई A 4. कोऽस्ति for कोऽत्र A. b. वर्ष फलम् for वर्षलक्षणम A., Bh. 6. वाच्यं for शेयं A1.7. The portion beginning with वाच्यं and ending with वत्सरे is missing in A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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