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________________ (४४) नायोऽदये' दशा सौम्या गोचरे शुदिरुत्तमा । शकुनैः शोमनैर्जातमवेत्पुंसां महोदयः ।।२२१॥ लग्नेशेऽभ्युदिते वाच्यं मासाब्दं तिथिलग्नभम् । वयो वर्ण दिशां भाग्यं त्रैलोक्यं च सदोदितम् ।।२२२॥ भावा अभ्युदिता ज्ञेयाः दशा अपि धनादयः । विपरीते विपयस्तं सर्व ज्ञेयं धनादिकम् ।।२२३॥ सिंहलग्ने ममायाते लग्नं पश्यति सिंहपे । साम्राज्यं जायते पुंसां सिंहस्येव पराक्रमः ॥२२४॥ यो यो नाययुतो दृष्टो भावः सौम्ययुतोऽथवा । समृद्धिस्तस्य तस्यैव पापरेवं विपर्ययः ॥२२५।। आचं "भूदयकंटकं क्षितिगृहं पातालकेन्द्रं पुनः प्रश्नकाल में जिस भाव का स्वामी उदित हो और गोचर शुद्धि उत्तम हो उसकी दशा शुभ होती है । इस स्थिति में यदि शुभ शकुन हो सो प्रश्नकर्ता का महान अभ्युदय कहना चाहिये ।।२२।। प्रश्नकाल में लग्नेश यदि उदित हों तो वह मास, वर्ष, तिथि लान, बय. वर्ण, भाग्य और त्रैलोक्य उसके लिये उदित रहते हैं ।।२२२।। धनादि भावेशों के उदित रहने पर उनकी उदित दशा में धनादि विषयों का अभ्युदय कहना चाहिये और विपरीत होने पर उन विषयों को अवनति कहना चाहिये ।।२२३।। प्रश्नकाल मे सिंह लग्न हो, सिह का स्वामी ( सूर्य ) लग्न को देखता हो तो प्रश्नकर्ता को साम्राज्य की प्राप्ति तथा सिंह के समान पराकम होता है ॥२२४॥ जो जो भाव अपने स्वामी तथा शुभ ग्रह से युक्त तथा उससे देखा गया हो प्रश्नकर्ता की उस उस भाव मे ममृद्धि होती है । यदि वही पापग्रह से युक्त वा इष्ट हो तो अशुभ फल देता है ।। २५।। 1. माघोदये for नाथोदये A. Amb. 2. मासाब्दं तिथिलग्नभम for मासाब्दतिथिलग्नपात् Amb. 3, वर्गवर्णदशां भावाः for वयो बणे दिशां भाग्यं Amb. दिशां भावाः Bh. दिशां भाग्यं 4. अप्युदिता for अम्युदिता A, A1. 5. द्वादशापि for दशा अपि A. 6, लग्नपे tor सिंहपे Bh. 7. सौम्यैर for सौम्य A. 8. तू for भू Amb.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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