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________________ (४३) आतङ्करुग्णगात्राणां यत्र मासे शनेर्भवेत् । उदयस्तत्र मासे स्यात्यु सामस्ते च दुर्गतिः ॥२१५॥ पृच्छाकाले यदा स्वामी विलग्नस्योदयं भजेत् । तदा सिद्धिबुधैर्याच्या प्रष्टुमनसि या स्थिता ॥२१६॥ पृच्छाकाले यदा खेटा उदयं यान्ति भावपाः । अभ्युदयस्तदा वाच्यः प्रष्टुमिपदादिभिः ॥२१७॥ पच्छाकाले चतुर्णां च कंटकानामिना यदि । एककालमुदीयन्ते तदा प्रष्टुमहोदयः ॥२१८॥ पच्छायां गोचरे शुद्धिर्यदा काले प्रजायते । प्रष्टुरभ्युदयो वाच्यः शुभभाववशात्पुनः ॥२१९॥ पच्छायां राशिनाथस्य यदा दशा शुभा भवेत् । प्रष्टुस्तदोदयो देश्यो राशेरपि प्रमाणतः ॥२२०॥ यदि प्रश्न करने वाला भीत वा रोगी हो तो शनि का जिस मास में उदय हो उस मास में उदय और अस्त के समय अस्त कहना चाहिये ॥२१॥ 'प्रकाल में यदि लग्नेश लग्न में रहे तो प्रश्नकर्ता की मनोगत बातों की सिद्धि होती है ।।२१६।। प्रश्नकाल में जिन २ भावों के स्वामी जिस जिस समय में उदय होंगे उसी २ समय में प्रश्नकर्ता का प्राम, पद, आदि विषयों का अभ्युदय कहना चाहिये ॥२१७॥ प्रश्नकाल में चारों केन्द्रस्थानों के स्वामी जब एक ही काल में उदित हों तब प्रश्नकर्ता का महान अभ्युदय कहना चाहिये ॥२१॥ प्रश्नकाल में गोचरशद्धि देखनी चाहिये । गोचरशद्धि जब हो उस समय शुभ भाव के सम्बन्ध से प्रश्न करने वाले का अभ्युदय कहना चाहिये ॥२१॥ प्रश्नकाल म राशीश की दशा जब शुभ हो, तब राशि के भी प्रमाण से प्रश्न करने वाले का अभ्युदय कहना चाहिये ।।२२०॥ 1. चतुर्गतिः for च दुर्गति: Amb. 2. ब्रजेत् for भजेत् A, A1 लग्नस्योदयतां भजेत् for विलग्नस्योदयं Bh. 3. पास for प्राम A. 4. मुदियन्ते for मुदीर्यन्ते A1.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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