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________________ (२) चरादिचादिमध्यान्त्या वर्गोत्तमनवांशकाः । त्रिपदशैकादशमोपचयाः स्युः परेऽन्यथा ॥१०॥ कर्मणा येन येनेह प्रेरितोऽभ्येति पृच्छकः । जन्मपृच्छारम्भलमैस्तत्तस्य व्यज्यते त्रिभिः ॥१०५॥ यो भावः स्वामिना सौम्यो दृष्टो युक्तः समृद्धिमान् । पापैस्तु हानिमानेवं द्वयमिन्दोयुतौ दृशि' ॥१०॥ लग्नसौम्यान्तरा योगा लमेश्वरशुभान्तराः । चन्द्रसौम्यान्तरः पुण्यस्तरणिश्च शुभान्तरा ॥१०७॥ नुघशिलास्तु विज्ञया रवेस्तुल्याः शुभान्तराः । तावन्तो मचकूलाच ज्ञेयाः शुभनिरीक्षणे ॥१०८॥ लमे चन्द्रः शनिः कुंभो खौ बुधे "विरश्मितः॥ . चर, स्थिर, द्विस्वभाव, राशियों के क्रम से आदि, मध्य, अन्न्य नवमांश वर्गोत्तम कहलाते हैं और ३, ६, १०, ११ वें उपचय कह. लाते हैं ।।१०४॥ . प्रष्टा जिस जिस कर्म से प्रेरित होकर आता है वह कर्म, जन्म, तथा मुच्छाकाल अथवा कर्म के प्रारम्भकाल-इन तीनों से प्रकट हो जाता है ॥१०॥ जो भाव शुभ ग्रह वा स्वामी से युक्त हो वा देखा जाय वह समद्धिप्रद होता है । यदि पापग्रहों से युक्त हो वा देखा जाय तो हानिकारक होता है। यदि चन्द्रमा से युक्त हो वा देखा जाय तो वृद्धि हानि दोनों होते हैं। अर्थात् पूर्णचन्द्र से वृद्धि और क्षीणचन्द्र से हानि होती है ॥१०६।। सौम्य लग्न के अन्तरयोग लग्नेश के शुभान्तर होते हैं । सौम्य चन्द्र का अन्तर भी शुभकारक है । तरणियोग भी शुभान्तर है। बारह मुन्थशिला भी शुभान्तर हैं । बारह मचकूल भी शुभान्तर हैं। शुभ दृष्टि में इन का भी विचार करना चाहिये ।।१०७-१०॥ ___1. चरादावादि for चरादिचादि A. 2. सौम्ये for सौम्यो A. 3. वृद्धः for युक्त: Amb. 4. सवृद्धि for समृद्धि A. 5. सद्वदिन्दोयुतो दशि for द्वयमिन्दो£तो दृशि Bh. 6. स्तरणश्च for स्तरनिश्च A. 7. मुन्थ for नुध A, A1 मथुशला Bh. 8. द्वादशव for रवेस्तुल्या: A, A1.9 मकबूलाश्च tor मचकूलाच Bh. 10. रविधी for रवौ बुधे Bh. 11. रस्मित: sor बराश्मट: Amb,1.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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