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________________ ( १५ ) स्वोचे दीप्तः स्वगृहे स्वस्थो नीचो वीक्षितो ह्यबलः ||६५|| मित्रगृहे मुदितो गृहविजितः पीडितः स्ववर्गगः शान्तः । अरिंगः खलोऽतिकिरणः शक्तो रविहतरुचिर्विकलः ||६६ || शत्र मन्दसित समय शशिजो मित्राणि शेषा रखेस्तीक्ष्णांशहिमरश्मिजश्च सुहृदौ शेषाः समाः शीतगोः । जीवेन्द्रष्णकराः कुजस्य सुहृदो ज्ञोऽरिः सितार्थी समौ मित्रे सूर्यसितौ बुधस्य हिमगुः शत्रुः समाचापरे ||६७॥ सौरेः " सौम्यसितावरी रविसुतो मध्ये परे त्वन्यथा म्यादौ समौ कुजगुरू शुक्रस्य शेषावरी । शुक्रज्ञौ सुहृदौ" समः सुरगुरुः * सौरस्य चान्येऽरयः तत्काले च दशायबन्धुसहजस्वान्तेषु मित्रस्थिताः ||६८ || 3 अवस्थायें होती हैं जब मह अपने उच्च में रहें तो दीप्त, अपने घर में रहें तो स्वस्थ और नीच में रहें वा नीच से देखे जायं तो अबल होते हैं ।। ६५|| ग्रह अपने मित्र के घर में रहने से प्रसन्न और किसी अन्य ग्रह से पराजित होने पर पीडित और अपने वर्ग में रहने से शान्त रहते हैं। शत्रु के घर में रहने से खल, अति किरण वाले दिखाई देने पर शक्त, और सूर्य की किरणों से हतप्रभ हो जाने पर विकल होते हैं ||६६ || गुरु के शुक्र और बुध शत्रु हैं, शनि सम और अन्य चन्द्रमा, मंगल, गुरु मित्र हैं । चन्द्रमा के सूर्य और बुध मित्र और अन्य मह सम हैं। मंगल के गुरु, चन्द्र, रवि मित्र, बुध शत्रु और शुक्र शनि सम हैं। बुध के सूर्य शुक्र मित्र, चन्द्रमा शत्रु और अन्य ग्रह सम हैं ||६७ || सूर्य के शुक्र और शनि शत्रु हैं, बुध सम, चन्द्रमा और मंगल मित्र है। शुक्र के बुध और शनि मित्र, मंगल और गुरु सम, और अन्य शत्रु हैं। शनि के बुध, शुक्र मित्र, गुरु सम और अन्य शत्रु हैं । १०।११।४।३।२।१२ इन स्थानों में रहने वाले मह तात्कालिक मित्र है ||६८ | 1. नीचानी चस्थितिदीन: for नीचो वीक्षितो ह्यबलः । A, B, & Bh. 2. सौरे: for सूरे: A, A1 3. शुक्रोशेरसुहृदो for शुक्रौ A1. 4. The Visarga is missing in A
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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