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________________ ( = ) श्रपु मौ पु शनौ लौ राहावस्थीति कीर्तयेत् । धातोविनिभये जाते विशेषोऽस्मादुदाहृतः ||३३|| शुक्रे चन्द्रे अलावारो देवतावसतिर्गुरौ । खौ चतुष्पदस्थानमिष्टिकानिचयो बुधे ||३४|| दग्बं स्थानं जे प्रोक्तं शनौ राहौ च बाह्यभूः 13 तुयें स्थाने निधिर्वीक्ष्यो नष्टस्थापित एव च ||३५|| इष्टिका रक्तपाषाणताम्रशृङ्गिचतुष्पदाः । हलायुध मेदानां धान्यधातोः कुजोऽधिपः ॥ ३६ ॥ धर्मरोमोपलारोहमहिषीदन्तसूकराः । neer मूषका रोगाः कथ्यन्ते सबले शनौ ||३७|| मंगल यदि अपने स्थान में हो तो मूंगे की प्राप्ति, शनि के रहने पर लोहे की, राहु में हड्डी की प्राप्ति कहनी चाहिये । इस प्रकार धातु के निकाय होने पर इसी से विशेष बातें भी कहनी चाहिएं ||३३|| चन्द्रमा और शुक्र यदि अपने अपने स्थान में हों तो गोशाला में. गुरु यदि अपने स्थान में हो तो मन्दिर में, सूर्य यदि अपने स्थान में हो तो गोशाला में, बुध यदि अपने स्थान में हो तो ईटों के ढेर अर्थात भट्टे आदि स्थानों पर निधि कहनी चाहिये ||३४|| मंगल के चौथे स्थान में होने से किसी जले हुए स्थान पर निधि होगी। शनि और राहु चौथे स्थान के हों तो बाहर की भूमि में निधि होनी चाहिये ||३५|| ईटे, tra पत्थर, तांबा, सींघों वाले पशु, जंजीर, शस्त्रविशेष तथा धान्य आदि धातुओं का मंगल स्वामी है ||३६|| मड़ा, वाल, पत्थर के घर, भैंस, दांत, सूअर, शराबी लोग चूहे और रोग अधिक मात्रा में होते हैं यदि शनि बली हो ||३७|| 1. A, AJ, B. and Bh. read for this verse :-- असा अयं शृगाविन्दाविष्टिकाश्रयकं बुधे । देवाश्रयं गुरौ तिर्यगाश्रयं बस्तुभास्वरे । 2. Cf. B. and Bh. दग्धं स्थानं कुजे बाह्यद्वार धराधरे ।
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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