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________________ स्थूल इन्दुः सितः खण्डचतुरस्रौ कुजोष्णगू। वतिलौ सौम्यधिषणो दीघों शनिभुजंगमौ ॥२८॥ भौमो रक्तो गुरुः पीतो बुधो नीलः शशी सितः । कविः शुभ्रो रविगोरः कृष्णौ राहुशनी पुनः ॥२९॥ कुजो हस्वो बुधो मध्यः शशी दीर्घो लघुः सितः । सूक्ष्मः शनिस्तु शुपिरो दीर्घश्वोक्तो विशेषयोः ॥३०॥ मयों चन्द्रबुधौ स्वग्यौँ , गुरुसितौ विवरं परे । स्वस्थानस्थाः प्रयच्छन्ति नष्टद्रव्यादिकं ग्रहाः ॥३१॥ शुक्र चन्द्रे भवेद्रौप्यं बुधे स्वर्णमुदाहृतम् ।। गुरौ रत्नयुतं हेम सूर्य मौक्तिकमुच्यते ॥३२॥ चन्द्रमा की आकृति स्थूल है । शुक्र कृश है । मंगल और सूर्य मध्यम शरीर वाले हैं । बुध और गुरु गोलाकार हैं। शनि और राहु लम्बे श्राकार वाले हैं ॥२८॥ मंगल का वर्ण सुरख है। गुरु पीला है। बुध नीला है । चन्द्रमा और शुक्र सफेद हैं । सूर्य का गौर वर्ण है। शनि और राहु काले वर्ण के है ।।२।। मंगल का स्वरूप छोटा है, बुध का मध्यम अर्थात न बड़ा न छोटा । चन्द्रमा का स्वरूप लम्बा है, शुक्र का छोटा है । शनि का स्वरूप सूक्ष्म और बृहस्पति का लम्बा कहा गया है ॥३०॥ ___चन्द्रमा और बुध मर्त्यलोक के ग्रह हैं । शुक्र और बृहस्पति स्वर्ग के ग्रह हैं। अन्य ग्रह पाताल के कहे जाते हैं । अपने अपने स्थान में बैठे हुए सभी ग्रह नष्ट वस्तु को देने वाले होते हैं ॥३१॥ चन्द्रमा अथवा शुक्र अपने स्थान में यदि हों तो रुपयों की प्राप्ति होती है । बुध के रहने पर सुवर्ण, बृहस्पति के रहने पर रन और सूर्य के रहने पर मोती की प्राप्ति होती है ॥३२॥ adopted. B and Bh. read for this verse:-चतुरस्रो रवि. कुजौ वृत्तो गुरुबुधौ स्मृतौ । राहुमन्दी तथा दीघौं सितोव स्थूलकः शशी। __ 1. For this verse A.. A1, B. and Bh. read :शुक्र चन्द्रे भवेद्रौप्यं हेमजीवे सरत्नकम् । रवी मुक्ता तमस्यस्थि कुजे त्रपु शनावयः॥
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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