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________________ ( २०० ) इत्यधकाण्डे त्रिपञ्चायोगाः । आषाढीयोगाः रोहिणीयोगाश्च समाख्याताः ॥ अतः परं चूडामणिसारोद्धारेणाधकाण्डमुच्यते । अर्घकाण्डं प्रवक्ष्यामि नरेन्द्रक्षोभकारकम् । येन विज्ञातमात्रेण क्षेमलाभौ यथा ध्रुवौ ॥१०८२।। पूर्वमासाभिधानं च प्रष्टुर्नाम लिखेत्ततः । स्थापयेद् ध्रुवकं भिन्नं सूक्ष्मवणक्रमेण च ॥ १०८३ ।। कुसुमा निर्मलाः ख्याताः प्रश्ना ग्राह्या यथोद्भवाः । स्वराणां द्विगुणा संख्या वणसंख्या समा भवेत् ॥ १०८४ ॥ मासभाण्डस्थितो राशिर्गणयेत् प्रश्नसंख्यया। मात्रासंख्याहते मागे शेषांकः फलमादिशेत् ॥१०८५ ॥ मासस्य ध्रुवके हीनं माण्डस्थाने ध्रुवं भवेत् । तस्मिन् मासे च तद् भाण्डं महधं च भविष्यति ॥१०८६॥ इत्यर्घकाण्डे त्रिकपश्चकयोगाः । श्राषाढीयोगाश्च रोहिगीयोगाश्च ममाख्याताः॥ अतः परं चूडामणिसागेद्धारेगाार्घकाए हमुच्यते ।। अब अर्घ काण्ड को कहते हैं जो कि राजा को भी क्षोभ कारक होता है, जिसको जानते ही निश्चय क्षेम और लाभ होता है ।।१०८२।। पहले अभीष्ट मास का नाम उसके बाद भाण्ड का नाम लिखें तब सूक्ष्म वर्ण के क्रम से पृथक ध्रवा की स्थापना करें ।।१०८३।। प्रश्न में ख्यात निर्मल पुरुषों का नाम ग्रहण करके उसकी स्वर संख्या को द्विगुण करें और वर्ण संख्या को समान हो स्थापित करें ॥१०८४॥ - मास और भाण्डस्थित राशि को मात्रा संख्या से गुणा करें और वर्ण की संख्या से भाग देवें जो शेष बचे उससे फल का आदेश करें॥१०८५॥ याद मास की धूवा ( शेष ) हीन हो और भाण्ड स्थान में अधिक हो सो सस मास में वह भाएड महर्ष होगा ॥ १०८६ ॥ 1-A adds जलयोगाश्च before समाख्याताः 2. भाएड. for प्रष्टु. Bh. -- -- -----
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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