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________________ ( १६६ ) चटन्ति भुजगा वृक्षे यदि भूतापपीडिताः । चतुर्दिवसमध्ये तु वृष्टिसिक्ता धरा मता ॥१०७६॥ ऊर्ध्वा चेद्डरी शेते धर्मातिशयपीडिता। तदा वर्षति पर्जन्यश्चतुर्दिवसमध्यतः ॥१०७७।। अम्लं तक्रं च तत्कालं लोहे कट्टस्तथैव हि । चतुर्दिवसमध्ये तु मेघवृष्टिर्घना मता ॥१०७८॥ कर्पासरसमांजिष्ठा बहुमूल्यास्तदा स्मृताः । सक्ररे मंगले विद्ध करान्तरगतेऽपि च ॥१०७९।। चतुर्दशी तु आषाढी हीना वर्षे यदा भवेत् । भावाश्रयेण तद् वाच्यं महषं च समे समम् ॥१०८०॥ आषाढी त्वधिका तस्याः समय तु तदा मतम् । संवत्सरस्य वर्तिन्याः शून्यपाते तु निष्कणम् ॥१०८१॥ सर्प यदि पृथ्वी के ताप से पीडित होकर वृक्ष पर चढ़े नो चार दिन के अन्दर पृथ्वी वर्षा मे सिक्त होती है ॥१०७६।। धर्म से अतिशय पीडित होकर यदि गडरी उर्वाभिमुख सोवे तो इन्द्र चार दिन के अन्दर वर्षा करते हैं ।।१०७७।। यदि अम्ल. तक्र, लोहा, कह श्रादि का पात हो तो चार दिन के अन्दर वर्षा होती है ।।१०७८|| मंगल और पापग्रहों से युक्त हो, या विद्ध हो या पाप ग्रहों के अन्तर में हो तो कार्पाम आदि का बहुत मूल्य होता है ।।१०७६।।। __ जिस वर्ष में आषाढ़ को पूर्णिमा तथा चतुर्दशी की हानि हो तो महर्ष होता है, इस प्रकार भाव के आप्रय से महर्घ और सम होने से समान कहना चाहिये ।।१०८०॥ ___ यदि आषाढी अधिक हो सो समर्थ होता है, इस प्रकार जिस वर्ष में उसका क्षय हो तो का नहीं होता है ॥१०८११॥ 1. कुरुरी for गडरी Bh. tre have adopted the reading of A. Amb. text reads उर्वाचे गहरी शेते | Al reads ऊर्ध्वा चेद्रादरी शेते । 2. किट्ट for कट्ट A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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