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________________ ( १६५ ) प्रातः प्रश्नेषु संचार्यो नवांशेऽभ्युदितः शशी । धनांशे शुभदे दृष्टे धनं दत्ते सुभोजनम् ।। ८८९ ।। सहजांशे वरं वक्ति भोज्यं दत्ते न किञ्चन । तुर्यांशके महाभोज्यं सुतांशे तनयान् धनान् ॥ ८९० || षष्ठांशे रोगसंतापं सप्तमे प्रमदासुखम् । अकस्माभिर्वृतेः कर्त्री वार्ता पतति कर्णयोः ।। ८९१ ।। दिनेन्दौ सप्तमे शुक्रे गुरुज्ञसहिते वदेत् । वरस्त्रीभिर्महासौख्यं पञ्चदशघटीलयम् ।। ८९२ ।। दिनेन्दाष्टमे करमागोद्धरणकं मृतिः । क्रूरद्वयस्य मध्यस्थे बन्धनं निबिडं वदेत् ।। ८९३ राहो वाथ कुजे करे परस्मिन्नपि खेचरे । अष्टमे स्वत्रैव दिनचन्द्रेऽसिना वधः ।। ८९४ ॥ 1 प्रातः काल के प्रश्न में अभ्युदित चन्द्रमा को नवांश में संचार करके फल कहें, यदि चन्द्रमा धन भाव के नवांश में और शुभ दृष्टि हो तो धन और सुन्दर भोजन देता है ॥ ८८ ॥ सहज भाव के अंश में सुन्दर बात कहें किन्तु भोजन कुछ नहीं मिले, और चतुर्थभाव के अंश मे खूब सुन्दर भोजन मिले, पुत्र भाव के अंश में पुत्र और धन की प्राप्ति हो ॥ ८० ॥ षष्ठ भाव के अंश मे रोग, संताप, होता है, सप्तम भाव के अंश में स्त्रीसुख होता है, और अकस्मात् निर्वृत्तिक करने वाली वाव कान में सुनाई दे || ८६१ ॥ दिन चर्या में चन्द्रमा शुक्र, गुरु, बुध, के साथ होकर सप्तम में हो तो सुन्दरी स्त्री से पन्द्रह घटी तक बहुत सुख होता है ॥ ८२ ॥ दिनचर्या में चन्द्रमा अष्टम में हो तो अकस्मात् रोग हो जिस सेमरगा हो जाय, यद दो पापग्रह के मध्य में हों तो दृढ़ बन्धन कहें ॥। ८६३ ॥ अष्टम में राहु, या मंगल, वा और कोई पाप ग्रह स्वगृही में हों इसी में चन्द्रमा हो तो शस्त्र से वध कहें ॥। ८६४ ॥ 1. कन्या स्याo for कस्मा A, A',
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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