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________________ ( १६४ ) क्रियते केवलादर्शस्त्रैलोक्यस्य प्रकाशकः । श्रीमदेवेन्द्रशिष्येण श्रीहेमप्रभमूरिणा ॥ ८८३ ॥ इति लामप्रकरणम् ।। दिनचर्याफलं वच्मि दुर्योधं विदुषां सदा । अंशकस्थेग्रहः सर्वैः क्षणे क्षणे सकौतुकम् ॥ ८८४ ॥ मदीयस्यास्य शास्त्रस्य यो नाम चोरयिष्यति । गोहत्यादिकृतं पापं तस्य सर्व भविष्यति ।। ८८५ ।। दिनफले ग्रहाः सर्वे सुसंचार्या नवांशकाः। मासफले नवांशस्था रविशुक्रबुधा अपि ॥ ८८६ ॥ दृग वाच्या दिनचर्यायां विंशतिश्च विंशोपकाः । दिने मासे फले चैवं नान्या दृष्टिविलोक्यते ।। ८८७ ॥ दिनेन्दौ तुर्यगे सौमे तहिने भव्यभोजनम् । चन्द्रे पुष्टे मुखं पुष्टं करयुक्त विपर्ययः ॥ ८८८ ।। श्रीमान् देवेन्द्र के शिष्य हेमप्रभसूरि ने त्रैलोक्य प्रकाश का केवलादर्श किया ||८८३ ॥ अंशो मे स्थित प्रह पर से क्षण क्षण में आश्चर्ययुक्त दिनचर्या फल को कहते हैं । जो कि पंडितों के लिये भी सर्वदा दुर्बोध है ।। ८८४ ॥ जो मनुष्य हमारे इस शास्त्र को चुरायगा उसको गोहत्याकृत सब पाप होगा ॥८८५॥ दिन फल में सब ग्रहों को नवमांश में संचारण करके फल कहें एवं मासफल में नवांश में स्थित रवि, शुक्र, बुध का भी विचार दिनचर्या फल में विशोपक दृष्टि कहनी चाहिये । दिन तथा मास के फल में अन्य दृष्टि का विचार नहीं करते हैं ।। ८८७ ॥ सोम दिन में चन्द्रमा चतुर्थ में हो तो सुन्दर भोजन कहना चाहिये । चन्द्रमा पुष्ट हो तो मुख पुष्ट कहें और पाप ग्रह के योग से विपरीत होता है| 1. नवफलम् for सकौतुकम् Bh. 2. विशापका: mss. 3. मुखें for मुखं Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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