SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४७ ) ज्ञातव्या दिवमर्मामा मास्तरस्य हि । समता वस्तुनो हि प्रतिपाद्या विचक्षणैः ॥ ७८९ ॥ प्रकारान्तरेणार्घ रहस्य माहशुक्लपक्षे द्वितीयायां भानोर्वामोदयः शशी । तस्मिन् मासे समस्यान्महघं दक्षिणोदये ॥७९० वृक्षेषु जायन्ते यदि द्वादश संक्रमाः . --- 1 तत्र वर्षे समग्रेऽपि शुभः कालो भवेद् ध्रुवम् ।।७९१।। अमावास्यां यदा चन्द्रोऽप्युदयास्तं करोति चेत् । मह तदा मासे भवेन्द्रनं समा ॥७९२|| Treat geet राशिगामिनि सद्धले । मासास्त्रयोदश तदा समघं जायते भुवि ॥ ७९३|| दिन से मास जानें अर्थात् जितने दिनों तक वह ग्रह शुभ अशुभ रहे क्रम में उतने मान पर्यन्त वस्तुओं को समर्ध और मह कहना चाहिये ॥ ७८ ॥ प्रकारान्तर से सम और मह को कहते हैं। - शुक्ल पक्ष की द्वितीया में सूर्य से चन्द्रमा का वामोदय हो तो उस मास में समर्थ होता है । दक्षिणोदय में महर्घ होता है ।। ७६० ।। बृहत्संज्ञक अर्थात् रोहिणी, उत्तरफल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्र, विशाखा, पुनर्वसु नक्षत्रों में प्रारह राशियों की सूर्य की संक्रांति हो तो सम्पूर्ण वर्ष शुभ काल होता है || ७६१ ॥ अमावास्या में बृहन्नक्षत्र में यदि चन्द्रमा का उदय अस्त हो तो उस मास में समर्थ होना है ॥ ७६२ ॥ बृहत्संज्ञक नत्तत्र मे बृहस्पति किसी राशि का संचार करें तो पृथ्वी में तेरह मास पर्यन्त समर्थ होता है ॥ ७६३ ।। 1. A. adds ofter this verse the following: बृहत्सुधान्यं कुरुते स जघन्यं धिष्ण्याभ्युदिते महर्धम् । समेषु धिष्ण्येषु समं हिमाशोर्वदन्त्यसन्दिग्धमिदं महान्तः ॥ 2 The verse is missing in Bh•
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy