SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४४) आश्लेषाश्विनीज्येष्ठाभिजिषष्ठं च वारुणम् । एतानि समयोगानि त्वेककालानि चेन्दुना ।। ७७२ ॥ पूर्वाषाढात्समारम्य ज्येष्ठा राकातिथेः परम् । कृष्णपक्षाधकाले चेद् वर्षत्युभययोगिषु ।। ७७३॥ तदा त्रिकालधान्यानामुत्पत्तिस्तु धना भवेत् ।। मासचतुष्टयं वृष्टितिव्या वृष्टिवेदिभिः ।। ७७४ ।। अग्न्यायोगिषु धिष्ण्येषु परोधान्यं धनं स्मृतम् । पृष्टयोगिषु धृष्टौ तु स्वल्पधान्यं नवा पुनः ७७५ ॥ युज्यमानः शुभैश्चन्द्रः सुभिक्षं कुरुते धनम् । चन्द्रयोगानुमानेन धान्यवृष्टी धनाधने । ७७६ ।। इति दशमभावे वृष्टिप्रकरणं द्वितीयम् । और शेष आर्द्रा, अश्लेपा, रोहिणी, पुनर्वस , तीनों उत्तर, स्वाती, विशाखा, अभिजित, शतभिषा, ज्येष्ठा, ये नक्षत्र समयोग के है ।। ७७२ ।। ___ ज्येष्ठ, पूर्णिमा के बाद पूर्वाषाढ़ा से लेकर कृष्ण पक्ष के प्रतिपद् में उभय योग में यदि वर्षा हो ।। ७७३ ।। तो ग्रीष्म, वर्षा, शरद, तीनों ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले धान्यों की उत्पत्ति होती है और चार माम तक वर्षा भी होती है ।। ७७४ ।। अग्र योग के नक्षत्र में वर्षा होने से आगे बहुत धान्य होते हैं. और पृष्ठ योग में स्वल्प धान्य होता है वा नहीं भी होता ।। ७७५ ।। चन्द्रमा शुभ ग्रह से युक्त हो तो बहुत सुमित होता है, इस प्रकार चन्द्रमा के योग के अनुमान से धान्य, तथा वर्षा का भी फलादेश इति दशमभावे वृष्टिप्रकरणं द्वितीयम् ॥ 1. अ for अग्न्या Bh. 2. पृष्ठि for पृष्ट Bh. -
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy