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________________ परागमनपृच्छायां लग्ने करः स्थितो यदा। तदा भत्रोभवेन्मृत्युर्दैवादागच्छतः पथि ॥४६७॥ सुतशत्रुगतैः करैः शत्रुर्मार्गानिवर्तते । चतुर्थगैरपि प्राप्तः शधुर्भग्नो निवर्तते ॥४६८॥ इति सप्तमस्थाने तृतीयं परचक्रागमनप्रकरणम् ॥ अथ सप्तम एव मार्गनिबद्धत्वाद् गमनागमनं निरूप्यते गमनागमनं प्रोक्तं चरे चन्द्रे चरोदये । द्विस्वभावे चराः च चरवर्गे विलम्बितम् ।।४६९॥ एतद्विपर्यये नेदं भवतीति विनिश्चितम् । चरेष्वपि प्रयाणं 'स्यायोगशक्त्या स्थिरोदये ॥४७०॥ अर्कार्किगुरुसौम्यानामेकेनापि चरोदये । शीघ्रयानं न तद्वक्रे नेन्दोः स्वाधव्ययैः शुभैः ॥४७१॥ शत्रु का आक्रमण होगा वा नहीं ऐसे प्रश्न में यदि कोई पापप्रह लम्र में हो तो अकस्मात मार्ग में प्राते हुए शत्र की मृत्यु हो जाय ॥ ४६७ ॥ पञ्चम, षष्ठ स्थानों में यदि पापग्रह हों तो शत्रु मार्ग में से लौट जाता है । वे पापग्रह यदि चतुर्थ स्थान में हों तो शत्रु अङ्गभङ्ग होकर लाट जाता है॥४६८॥ चन्द्र यदि चर राशि में हो और चरलम होवे तो आना-जाना (आसानी से ) होता है। यदि लग्न और चन्द्रमा द्विस्वभाव राशि के हो, चरखण्ड वा चरराशि के वर्ग में पड़े हों तो आना-जाना देरी से होता है ।। ४६६ ॥ इसकी विपरीतावस्था में यह नहीं होता, यह निश्चित है । चरलग्न में भी यात्रा होती है । स्थिरलम में भी योग शक्ति से यात्रा जाननी चाहिये ॥४७०।। रवि, शनि, गुरु, बुध-इनमें से कोई भी घर लम्र में रहे तो शीघ्र ही यात्रा होगी, यदि वे वक्री हों तो नहीं और यदि चन्द्रमा से शुभ प्रह द्वितीय लाभ-व्यय स्थानों में हों तो भी नहीं ।। ४७१ ॥ 1. यदि for यदा AL. 2. पापैः for करें: A, A1 3. स्थिरलग्ने for चरवर्गे Bh. 4. चरे पथि प्रयातं स्या for चरेष्वपि प्रया स्या० A., Bh. 5. तु तद्वके नन्दो for न तद्वके नेन्दोः A., नंदास्त्वर्थे ध्यये शुभः Bh. HTHHTHHINI
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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