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________________ द्विस्वभावे विलग्ने चेत्यापराशिविवर्जिते । भौमबुधेन्दुशुक्राः स्युरोऽपत्यं स्थितं तदा ॥४२०॥ पापग्रहाश्चरे राशौ सम्भवन्ति यदापि हि । तदावश्यं बुधै यमपत्यं परपौरुषात् ॥४२१॥ करग्रहाः स्थिरे राशौ प्रश्ने यदि भवन्ति चेत् । हृदयं सदयं ध्येयमपत्यं निजवल्लभात् ॥४२२॥ मिश्रग्रहाः स्थिरे गशौ पृच्छायां संभवन्ति चेत् । तदा ध्रुवं नरैर्वाच्यमपत्यं मिश्रपौरुषात् ॥४२३॥ स्वभर्तुरन्यमा योषा जातात्र गुर्विणी । इति प्रश्ने बुधैश्चिन्त्यं पञ्चमस्थानकं किल ॥४२४॥ दृश्यते शनिभौमाभ्यां सोमदृष्टिविवर्जितम् । पञ्चमं यदि गेहं स्यात्तदा गुर्वी परान्नरात् ॥४२५॥ मंगल, बुध, चन्द्रमा और शुक्र यदि पापग्रहों से होन द्विस्वभाव लग्न में हो तो सन्तान को आगे में कहना चाहिये ॥ ४२० ॥ यदि पापग्रह चर राशि में हो तो वह सन्तान अवश्य ही दूसरे पुरुष से उत्पन्न होवे ।। ४२१ ॥ पापग्रह यदि प्रश्नकुण्डली में स्थिर राशि में रहें तो वह संतान अवश्य ही अपने पति से हो ॥ ४२२ ॥ प्रश्नकाल में यदि स्थिर राशि में मिश्र ग्रह अर्थात शुभ और अशुभ दोनों प्रह हों तो वह सन्तान मिश्र पुरुष अर्थात् स्वपिता और परपिता से उत्पन्न कहनी चाहिये ॥ ४२३॥ वह स्त्री अपने वा पराये पति से गर्भवती हुई है-ऐसे प्रश्न में पञ्चम स्थान को देखना चाहिये ।। ४२४ ॥ पश्चम स्थान यदि शनि और मंगल से देखा जाय और चन्द्रमा की दृष्टि उस पर न हो तो वह गर्भ परपुरुष से समझना चाहिये ।।४२५।। ____ 1 राग्नो for रप्रे A. 2. स्थिरं for स्थितं A., A1 3. भवन्ति ययहो for यदि भवन्ति चेत् A. 4. स्थानकं पंचम for पंचमस्थानकम् A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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