SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लमलमेशचन्द्राश्च स्थिरराशी भवन्ति चेत् । अदृष्टपुरुषा ज्ञेया कुमारी स्वगृहेऽपि हि ॥४१४|| स्थिरराश्यन्यराशी चेद् भौमेन' सह चन्द्रमाः । कुमार्यदृष्टदोषव तदा वाच्या विचक्षणः ।।४१५॥ लमलमेशचन्द्राश्च चरराशौ भवन्ति चेत् । सा परपुरुषाक्रान्ता कनी वाच्या बुधैस्तदा ॥४१६|| शनिचन्द्रौ यदा लमे वसतः कामिता सदा । द्विरूपे चरराशौ वा चन्द्रो भवति चेद्यदि ॥४१७१ मूललग्नं स्थिरं तत्र दोषः खलकृतो भवेत् । यदि पृच्छति येनैषा प्रसता वरवर्णिनी ॥४१८॥ शुक्र चन्द्रे' बुधे सिंहे त्वेवंयोगे प्रसूतिका । वृश्चिके बुधशुक्रौ चेद् वृषे वा तिष्ठतो यदि । एवं योगे समायाते प्रमूता युवती मता ॥४१९॥ तो यदि लम, लग्नेश और चन्द्रमा स्थिर राशि के हों तो वह कन्या अपने घर में निर्दोष होकर रहे ।। ४१४ ॥ चन्द्रमा यदि मंगल के साथ रहकर स्थिर अथवा अन्य राशि में रहे जो भी वह कन्या प्रदूषित होनी है ॥ ४१५ ।। लग्न, लग्नेश और चन्द्रमा यदि चर राशि में हों तो वह कन्या अन्य पुरुष के साथ फंसी हुई कहनी चाहिये ।। ४१६ ॥ शनि और चन्द्रमा यदि लग्न में हो तो वह कन्या सदा कामुकी रहे। यदि चन्द्रमा चरराशि अथवा द्विस्वभाव राशि में रहे तो भी कन्या सदा कामुकी रहती है ॥ ४१७ ॥ यदि जन्मलग्न स्थिरराशि हो तो दुष्ट से दूषित अथवा प्रसूता कन्या कहनी चाहिये ।। ४१८ ।। शुक्र चन्द्रमा, बुध सिंह में वा बुध और शुक्र वृश्चिक अथवा वृष में यदि हों तो वह स्त्री प्रसववती कहनी चाहिये ।। ४१६ ।। 1. सौम्येन for भौमेन A1 2. सदा for सदा A., 3. वस्तुतो कामिना सदा Bh. 4. कुंभे for चन्द्रे A. 6. संस्थितौ for तिष्ठत: A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy