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________________ काव्य चिंतकों ने भाषा की संमूर्तन विधियों को अलंकरण कहा है किंतु भाषा की नित नवीन उद्घाटित शक्ति अलंकारों के घेरे में पूरी तरह नहीं बंध पाती, जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रयुक्त शब्दों का सामर्थ्य उनकी बिम्बपरकता में है। पाश्चात्य चिंतकों ने भावों के प्रकाशन हेतु बिम्ब की अनिवार्यता को सिद्ध किया। लेविस ने सर्वप्रथम बिम्ब के लिए 'चित्रात्मकता' शब्द का प्रयोग किया है। अलंकार बिम्ब नहीं है किंतु भाव या दृश्य की सादृश्यता के कारण मस्तिष्क में एक चित्र बनता है। जो तुलना या समानता का कारण बनता है। लेविस ने बिम्ब के पर्याय के रूप में 'मेटाफर' शब्द का प्रयोग किया है जिसे रूपक के रूप में जाना जाता है। सादृश्य मूलक अलंकार के अंतर्गत उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अपन्हुति, संदेह, भ्रम, उल्लेख, अन्योक्ति, समासोक्ति, प्रतीप, दृष्टांत आदि अलंकार आते हैं / (126) निःसंदेह मेटाफर अलंकार है बिम्ब नहीं किन्तु बिम्ब अलंकार से बिल्कुल असम्बद्ध और अलग भी नहीं है। दोनों अप्रस्तुत विधान के वाचक होते है। चूंकि बिम्ब ऐन्द्रियजन्य है इसलिए सादृश्यमूलक अंलकारों के अलावा अन्य अलंकार बिम्ब के अंतर्गत नहीं आते, उसमें भी रूपक अलंकार से उसकी अधिक निकटता है। डॉ. जगदीश गुप्त का विचार है - "यह सत्य है कि अलंकारों में रूपक बिम्ब के कदाचित सबसे निकट पड़ता है। परंतु भाव स्तर की दृष्टि से उसे बिम्ब के समकक्ष नहीं कहा जा सकता। रूपक में वस्तु और वस्तु के बीच का रूपात्मक तादात्म्यसंबंध प्रधान होता है। जबकि बिम्ब में अनुभूति ही वस्तु की गोचरता में परिणित हो जाती है तथा उससे सादृश्य का जो तत्व उभरता है उसमें रूपक की तरह घटित होना प्रधान नहीं होता।127) ह्यूम की मान्यता है कि "बिम्ब वस्तुओं के आंतरिक सादृश्य का प्रत्यक्षीकरण है।"(128) इस सन्दर्भ में डॉ. शशिभूषण दास गुप्त ने लिखा है कि "हम काव्य के जिन धर्मों को अलंकार के नाम से पुकारते हैं, थोड़ा सोचने पर समझ सकेगें कि वे अलंकार उस कवि की उस विशेष भाषा के ही धर्म हैं। कवि की काव्यानुभूति, स्वानुरूप चित्र, स्वानुरूप वर्ण, स्वानुरूप झंकार लेकर ही आत्माभिव्यक्ति करती है, जब कवि की विशेष काव्यानुभूति इस विशेष भाषा में मूर्त नहीं हो पाती, तब सच्चे काव्य की रचना नहीं हो पाती / (129) [135]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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