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________________ बिम्ब और अलंकार काव्य के शोभाकर धर्म को अलंकार कहते हैं |(121) अलंकार भाषा के श्रृंगार और भावों के सफल व्यंजक होते हैं। राजशेखर ने अलंकार को सातवाँ बेदांग कहा है। पूर्ववर्ती आचार्य भामह, दण्डी, रूद्रट, उद्भट अलंकारों को महत्व देते हैं। 'भामह' का कथन है कि 'न कान्तमपि निर्भूषं विभाति वनिता मुखम् (122) अर्थात् रमणी का सुंदर मुख भी आभूषण रहित होने पर शोभित नहीं होता। वैसे ही अलंकार विहीन काव्य रूचिकर नहीं माना जा सकता। यह वक्रोक्ति है जो काव्यों में प्राणों का संचार करती है। आचार्य नंददुलारे बाजपेयी ने अलंकार की समीक्षा करते हुए लिखा है कि "सौंदर्यम्लंकारः" द्वारा यह अनुमान किया जा सकता है कि भामह ने अलंकार शब्द का प्रयोग काव्य सौंदर्य के व्यापक अर्थ में किया है। उस समय तक गुण और अलंकार का भेद प्रस्फुटित नहीं हुआ था और भामह के अनुसार गुणों का समावेश भी अलंकारों के अंतर्गत होता था। सौंदर्यम्लंकारः की पूरी व्यापकता उनके निर्देशों में पायी जाती है। "काव्यालंकार" नामक काव्य शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ में भामह ने अलंकार को काव्य की आत्मा कहा है। (123) अलंकार अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। अलंकार काव्य के बाह्य तत्व हैं। इनके प्रयोग से शब्दगत और अर्थगत व्यवहार में चारूता आती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल अलंकारों की भरमार कविता में आवश्यक नहीं मानते। उनके शब्दों में - "अलंकार चाहे अप्रस्तुत वस्तु योजना के रूप में हो (जैसे- उपमा, उत्प्रेक्षा आदि में) चाहे वाक्य वक्रता के रूप में (जैसे-अप्रस्तुत प्रशंसा, परिसंख्या, ब्याज स्तुति, विरोध इत्यादि में) चाहे वर्ण विन्यास के रूप में (जैसे- अनुप्रास में) लाये जाते हैं, वे प्रस्तुत भाव या भावना के उत्कर्ष साधन के लिए ही। (124) अलंकारों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति सहज हो जाती है, और भिन्न-भिन्न अलंकार भिन्न भिन्न भावों के अनुरूप होते हैं। सुमित्रानन्दन पंत के अनुसार-'अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए नहीं वे भाव की अभिव्यक्ति के विशेषद्वार हैं। भाषा की पुष्टि के लिए राग की परिपूर्णता के लिए आवश्यक उपादान है। वे वाणी के आचार, व्यवहार, रीति नीति हैं। पृथक स्थितियों के पृथक स्वरूप, भिन्न अवस्थाओं के भिन्न चित्र हैं | (125) [134]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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