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________________ 36 दृष्टि का विषय नहीं हो सकती; इसी प्रकार अपने त्रिकालवर्ती परिणामों को छोड़ने पर गुण तथा द्रव्य भी कोई भिन्न वस्तु सिद्ध नहीं हो सकते।' अर्थात् पर्याय में ही द्रव्य छुपा है, द्रव्य पर्याय से वास्तविक भिन्न प्रदेशी नहीं है। गाथा २१४ - अन्वयार्थ – ‘परन्तु जो समुद्र है वही तरंगमालाएँ होता है क्योंकि वह समुद्र स्वयं ही तरंगरूप से परिणमन करता है।' अर्थात् द्रव्य ही (अव्यक्त ही) पर्यायरूप से (व्यक्तरूप से) व्यक्त होता है, परिणमन करता है। गाथा २१५ - अन्वयार्थ - ‘इसलिए सत् वह स्वयं ही उत्पाद है तथा वह सत् ही ध्रौव्य है तथा व्यय भी है क्योंकि सत् (द्रव्य) से पृथक् कोई वह उत्पाद अथवा व्यय अथवा ध्रौव्य कोई नहीं है।' द्रव्य-गुण-पर्याय और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य व्यवस्था समझने के लिए इस गाथा का मर्म समझना अत्यन्त आवश्यक है कि वास्तव में द्रव्य अभेद है, भेदमात्र समझाने के लिए ही है, व्यवहारमात्र ही है। गाथा २१६ - अन्वयार्थ - ‘अथवा शुद्धता को विषय करनेवाले नय की अपेक्षा से उत्पाद भी नहीं, व्यय भी नहीं तथा ध्रौव्य, गुण और पर्याय वह भी नहीं परन्तु केवल एक सत् ही है।' अर्थात् शुद्धनय से एकमात्र पंचमभावरूप=परमपारिणामिक भावरूप सत् ही है, वह वैसा का वैसा ही परिणमता है जो हम आगे देखेंगे। भावार्थ - ‘अथवा शुद्ध द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य गुण और पर्याय इत्यादि कुछ भी नहीं है। केवल सर्व के समुदायरूप एक सत् ही पदार्थ है (यह कथन वास्तविकतारूप अभेदनय का है और यही कार्यकारी है इसलिए भेदरूप व्यवहार में रमनेयोग्य नहीं है परन्तु अभेदरूप वस्तु में ही स्थिर होनेयोग्य है, जो हम आगे देखेंगे।) क्योंकि जितनी कोई भेदविवक्षा है, वह सब पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से ही कल्पित करने में आती है (अर्थात् वास्तविक स्वरूप तो मात्र अभेद ही है, बाकी सब मात्र कल्पना ही है)। शुद्धद्रव्यार्थिकनय, किसी भी प्रकार के भेद को विषय नहीं करता इसलिए शुद्धद्रव्यार्थिकनय से निरन्तर सर्व अवस्थाओं में सत् ही प्रतीतिमान होता है (सर्व अवस्थाओं में पर्याय में एकमात्र पंचमभावरूप=परमपारिणामिकभावरूप सत् ही प्रतीतिमान होता है) परन्तु उत्पाद-व्ययादिक नहीं। इसका स्पष्टीकरण-' ___ गाथा २१७ - अन्वयार्थ – 'सारांश यह है कि जो भेद होता है अर्थात् जिस समय भेद विवक्षित होता है, उस समय निश्चय से वे उत्पादादि तीनों प्रतीत होने लगते हैं तथा जिस समय
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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