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________________ सम्यग्दर्शन पर्यायरूप और उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप वस्तु व्यवस्था सम्यक्प से बतलाते हैं, उस पर विचार करना योग्य है और वह जैसा है वैसा प्रथम स्वीकार करना परम आवश्यक है, क्योंकि जैन समाज में एक वर्ग ऐसा भी है कि जिसने वस्तुव्यवस्था को ही विकृत कर दिया है; वे द्रव्य और पर्याय को इस हद तक अलग मानते हैं मानो वे दो अलग द्रव्य ही हों! वे एक अभेद द्रव्य में उपजा (कल्पना) करके बतलाये हुए गुण-पर्याय को भी भिन्न समझते हैं अर्थात् द्रव्य का सम्यक् स्वरूप समझाने के लिए द्रव्य को अपेक्षा से गुण और पर्याय से भिन्न बतलाया है, उसे वे वास्तविक भिन्न समझते हैं; द्रव्य और पर्याय को दो भाव न मानकर वे उन्हें दो भागरूप मानने तक की प्ररूपणा करते हैं और आगे उसमें भी सामान्य-विशेष ऐसे दो भाग की कल्पना करते हैं। इस प्रकार वस्तुव्यवस्था को ही विकृतरूप से धारण करके तथा विकृतरूप से प्ररूपणा करके वे स्वयं संसार का अन्त करनेवाले धर्म से तो दूर रहते ही हैं और तदुपरान्त वे जाने-अनजाने अनेक लोगों को भी संसार के अन्त से दूर रखते हैं, जो बात अत्यन्त करुणा उपजानेवाली है; इसलिए यहाँ प्रथम हम वस्तु व्यवस्था पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं।
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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