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________________ दृष्टि का विषय २६ सम्यग्दर्शन बिना द्रव्य चारित्र पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध की गाथागाथा ७६९ अन्वयार्थ-‘तथा जो सम्यग्दर्शन बिना द्रव्यचारित्र तथा श्रुतज्ञान होता है, वह न तो सम्यग्ज्ञान है तथा न सम्यक्चारित्र है, अगर है तो वह ज्ञान तथा चारित्र, मात्र कर्मबन्ध को ही करनेवाले हैं।' __ अर्थात् यहाँ प्रथम बतलाये अनुसार कोई अपने को द्रव्यचारित्र से ही अथवा क्षयोपशम ज्ञान से ही हम मोक्षमार्ग में ही हैं ऐसा समझते हों और ऐसा समझाते हों तो उनके लिये लाल बत्ती समान यह गाथा है। अर्थात् किसी को भी अभ्यासरूप द्रव्यचारित्र लेने की कुछ भी मनाही नहीं है परन्तु उससे यदि कोई अपने को कृतकृत्य समझते हों अथवा समझाते हों और स्वयं को छठा अथवा सातवाँ गुणस्थानक मानते हों अथवा मनवाते हों और श्रावक अपने को पाँचवें गुणस्थानक में स्थित समझते हों अथवा समझाते हों तो उनके लिये यह गाथा लाल बत्ती समान अर्थात् सावधान करने के लिये है। इसलिए यदि कोई ऐसा न समझकर, अपने को मात्र आत्मलक्ष्य से अर्थात् आत्मप्राप्ति के लिये अभ्यासरूप चारित्र मानते, समझते हों और उसके लिये ही श्रुतज्ञान आराधते हों तो वे कर्मबन्ध के कारण से आंशिक बच सकते हैं और पूर्व में बतलाये अनुसार अपना कल्याण भी कर सकते हैं।
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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