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________________ ऊर्ध्ववायुः परीक” हृदयस्योपरोधनम्।। __ मुखेन विट्प्रवृत्तिश्च पूर्वोक्ताश्चायमाः स्मृताः। अर्थ : पुरीष वेग रोध से हानि-पुरीष के वेग रोकने से जंघा (जांघ) की पिण्डिलियों में ऐंठन के समान पीड़ा प्रतिश्याय शिरःशूल, उर्ध्ववात, परिकर्त्त (कैची सी काटने की तरह गुदा में वेदना) हृदयगति की रूकावट और मुख से पुरीष का निकलना तथा अपान वायु के रोकने से जो भी रोग होते हैं वे सभी रोग हो जाते हैं। __ अङ्गभङ्गाश्मरीवस्तिमेदवगंक्षणवेदनाः। मूत्रस्य रोधात्पूर्वे च प्रायो रोगाः। अर्थ : मूत्र वेग रोकने से हानि-मूत्र के वेग रोकने से अगंभगं अर्थात् अगों में टूटने की तरह पीड़ा अश्मरी वस्ति मूत्रेन्द्रिय एवं वंक्षण प्रदेश में वेदना तथा अपान वाय और पुरीष के वेगों को रोकने से जो ऊपर रोग बताये गये है वे सभी रोग होते हैं। अर्थात् गुल्म, उदात वेदना, ग्लानि, अपान वायु, मूत्र, पुरीष की रूकावट, दृष्टि रोग अग्निमांद्य, हृदय रोग, पिण्डिकोवेष्टन, प्रतिश्याय, शिरःशूल ऊद्धर्ववात, परिकर्त्त, हृदय गति की रूकावट और मुख से पुरीष की प्रवृति होती है। तदौषधम् वतर्यभ्यगावगहाश्च स्वेदनं वस्तिकर्म च। अन्नपानं च विभेदि विड्रोधोत्थेशु यक्षमसु । अर्थ : पुरीष वेग रोध की चिकित्सा-अपान वायु पुरीष और मूत्र के वेग रोकने से उत्पन्न हुये रोगों में गुदा में फलवर्ति का प्रयोग–नाभि के नीचे वातनाशक तैल का मर्दन, वातनाशक औषधियों के क्वाथ में बैठाना, स्वेदन-निरूह वस्ति का प्रयोग एवं मल को भेदन करने वाले अन्न और पान का प्रयोग करना चाहिये। और पुरीष के वेग धारण करने से उत्पन्न राजयक्ष्मा रोग में जो चिकित्सा बतायी जायेगी वह चिकित्सा भी करनी चाहिए। विश्लेषण : चरक ने पक्वारूय में वेदना, अपान वायु और मल की प्रवृत्ति का अभाव एवं आध्मान का होना अधिक बताया है। यहाँ मुख से पुरीख का निकलना भी बताया है। तात्पर्य यह है कि अधामार्ग से मलमूत्रादि का निःसरण अपान वायु के द्वारा ही होता है जब आये हुए पुरीष के वेग को रोक लिया जाय तो अपान वायु कुपित हो जाता है। तथा उस अपान वायु की गति ऊपर हो जाती है साथ ही मल भी बड़ी आंत में चला जाता है। तथा बड़ी आंत की कला में द्रवांश का शोषण हो जाता है। फलस्वरूप मल शुष्क होकर गांठ दार हो जाता है और वह सुख पूर्वक बाहर नहीं निकलपाता है जिससे अपान वायु का और अधिक प्रकोप हो जाता है जिस से उदर में आटोप और वेदना होती है, जब अपान वायु और ऊपर चलता है तो उसके साथ गया हुआ मल मुख से 43 .
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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