SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्याय रोगों की उत्पत्ति के कारण अथातो रोगानुत्पादनीयाध्यायं व्याख्यास्यामः । इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः । अब ऋतुचर्या अध्याय के बाद जिन कारणों से रोगों के उत्पन्न होने की संभावना होती है, उनके बारे में चर्चा की जाएगी। साथ ही जिन कारणों से रोग नहीं होते हैं उनकी भी चर्चा इस अध्याय में है । वेगान्न धारयेद्वातविण्मूत्रक्षवतृट्क्षुधाम् । निद्राकासश्रमश्वासजृम्भाऽश्रुच्छर्दिरेतसाम् ।। अर्थ : अधारणीय वेग - (1) अपान वायु (2) मल (3) मूत्र (4) छीक (5) प्यास (6) भूख (7) निद्रा (8) कास ( 9 ) श्रमजन्य - श्वास ( 10 ) जम्भाई ( 11 ) अश्रु (12) वमन और आए हुए (13) शुक्र के वेगों को नहीं धारण करना चाहिए । विश्लेषण : ये 13 अधारणीय वेग हैं। यदि इनका वेग आ रहा हो तो उसे रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए । प्रायः यह देखा जाता है कि कार्य की व्यस्तता के कारण या लज्जा के कारण इन वेगों को रोकने का प्रयास अनेकों व्यक्ति करते हैं। इन वेगों के रोकने से प्रायः सभी प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिसका निर्देश आगे किया जा रहा है। अधोवातस्य रोधेनं गुल्मोदावर्तरूक्क्लमाः । वातमूत्रशकृत्सगदृष्टयग्निवधहृद्गदाः ।। अर्थ : अपान वायु के रोकने से हानि - अपान वायु के रोकने से गुल्म उदावर्त शूल रोग तथा क्लम (मानसिक श्रम) तथा अपान वायु के रोकने से मूत्र और मल की रूकावट एवं नेत्ररोग, अग्निमांघ और हृदय रोग हो जाता है। स्नेहस्वेदविधिस्तत्र वर्तयो भोजनानि च । पानानि वस्तयश्चैव शस्तं वातानुलोमनम् ।। अर्थ : अपान वायु के रोकने से उत्पन्न उपरोक्त रोगों में स्नेहपान या शरीर का स्नेहन और स्वेदन करना चाहिए। गुदामार्ग में मल प्रवर्तक वर्तिका का लगाना और वायु को अनुलोम करने वाला भोजन-पान एवं बस्ति का प्रयोग करना उत्तम होता है। शकृतः पिण्डिकोद्वेष्टप्रतिश्यायशिरोरूजः । 42
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy