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________________ वर के लक्षण कन्या केपिता को चाहिये कि वर में देखे कि वह सुशील कुल, निरोग शरीर, विद्या अवस्था, धन आदि उत्तम गुण होने चाहिये । अन्धा, गूंगा, रोग युक्त, नपुंसक, दूरस्थ पतित, दरिद्र, अन्यासक्त वर को अपनी कन्या न दे। कन्या के माता पिता को चाहिये कि वह अपनी कन्या बहुत नजदीक या बहुत दूर रहने वाले तथा अपने से बहुत सम्पन्न या बहुत दरिद्र वर भी अपनी कन्या न दे। क्योंकि दोनों के पालन-पोषण के वातावरण में बहुत अन्तर हो जाता है। बहुत नजदीक रहने से भी कन्या का दूसरे परिवार में सामंजस्य करने में कठिनाई पैदा होती है क्योंकि माता-पिता को कन्या के विवाहित प्रत्येक अवस्था का पता लगता रहता है और कन्या के माता-पिता बात-बात पर कन्या से मिलते रहते हैं। कन्या घर नहीं कर पाती। आजकल यह काम टेलीफोन में भी किया हुआ है। कन्या के माता-पिता बात बात पर कन्या को टेलीफोन करते रहते हैं तथा कन्या को ससुराल वालों को समझने में कठिनाई होती है। गणना में भेद भारत के उत्तर भाग में 1. वर्ण 2. वश्य 3. तारा 4. योनि 5. ग्रहमैत्री 6. गण 7. भकूट 8. नाड़ी । ये आठ गुण मिलते हैं। इन आठ गुणों की संख्या 36 होती है। दक्षिण भारत में 1. दिन 2. गण 3. माहेन्द्र 4. स्त्री दीर्घ, 5. योनि 6. भकूट 7. राश्याधिपति 8. वश्य 9 राज्जू 10. वेध से मेलापक देखा जाता है। इसके 55 गुण होते हैं। कहीं 1. वर्ण 2. वश्य 3. तारा 4. नृ दूर 5. योनि 6. ग्रह मैत्री 7. गण मैत्री 8. भकूट 9. नाड़ी। नव विधि मेलापक देखा जाता है। जिसके 45 गुण होते हैं। कहीं ब्राह्मण के लिए दश भेद, क्षत्रिय के लिए आठ भेद, वैश्य के लिए छ: भेद और शूद्र के लिए चार भेद का मेलापक होता है। शूद्र के लिए केवल योनि, ग्रह मैत्री, गण मैत्री और भकूट ये चार भेद ही आवश्यक समझे जाते हैं। 145
SR No.009373
Book TitleSaral Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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