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________________ शुभाशुभ उत्तम है। पाठकों को फिर मैं याद दिलाना चाहूँगा कि जो जन्म कुण्डली के योगों में नहीं वह दशा अन्तर दशा नहीं दे सकती। माना कि जातक की जन्म कुण्डली में शादी का योग ही नहीं हो तो दशान्तर दशा सप्तमेश की हो या कारक ग्रह की शादी नहीं दे सकती। इसलिए फल के लिए योग का होना आवश्यक होता है। इसी प्रकार जो ग्रह की दशान्तरदशा नहीं दे सकती, वह उस फल को देता है यदि दशान्तर दशा ही तो गोचर कितना भी शुभाशुभ हो नहीं दे सकता। पहले दशान्तर दशा का होना आवश्यक है फिर गोचर उस फल को देता है। यदि दशान्तर दशा ही नहीं तो गोचर कितना भी शुभाशुभ हो वह फल नहीं दे सकता। इसको इस प्रकार भी कहा जा सकता है। कि सबसे पहले जातक के लिये फल होना चाहिये। दशान्तरदशा उस फल को संदेश वाहक, गोचर को देती है। तथा संदेश वाहक, गोचर वह फल जातक को देता है। यदि दशान्तर दशा संदेश वाहक को फल ही नहीं देगी तो संदेश वाहक जातक को फल कहां से देगा? इसलिए क्रम निश्चित है पहले फल होना चाहिये (योग) दूसरे उन ग्रहों की दशान्तर दशा होनी चाहिये तब गोचर जातक को फल देता है। अन्यथा फल प्राप्त नहीं होता गोचर केवल सहायक है। गोचर के फल को प्रभावित करने वाले भिन्न-भिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के बाद साढ़े साती का अध्ययन करते हैं। जन्म राशि से 12वें स्थान जन्म राशि पर एवं द्वितीय भाव पर जब शनि गोचर करता है उसे शनि की साढ़े साती कहते हैं। शनि एक राशि पर लगभग 2. 5 वर्ष रहता है। इस प्रकार तीन राशियों पर 7.5 वर्ष हुए। इसलिए इसे साढ़े साती कहते है। साढ़े साती अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी। यह सब जन्म कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि कि स्थिति तथा बल पर निर्भर करता है। लग्न, सप्तशलाखा, तारा तथा अष्टक वर्ग के बल पर भी निर्भर करता है। परन्तु फिर भी यह मानसिक कष्ट कारक हो सकती है। जब शनि जन्म चन्द्रमा से 45° कम पर 12वें भाव में रहता है तो शनि का प्रभाव आरम्भ हो जाता है। यदि शनि वक्री हो जाए तो 7.5 वर्ष से भी ज्यादा समय तक तीनों राशियों पर रह सकता है जैसे कुम्भ राशि वालो के लिए 1993 में हुआ। जिनका दीर्घ जीवन है उनके जीवन में 3 बार साढ़े साती आती है। पहले फेरे 138
SR No.009373
Book TitleSaral Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunkumar Bansal
PublisherAkhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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