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________________ का त्याग, असामयिक भोजन का त्याग, कोमल शैय्या का त्याग और कामिनी व कंचन का त्याग। इनहें एक साधक के लिए अनिवार्य माना गया है। बौद्ध सम्प्रदाय के चार भेद (अ) माध्यमिक बौद्ध- यह शून्यवादी सम्प्रदाय है । इस सम्प्रदाय की आस्था के अनुसार भगवान बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेशों में से केवल सर्व शून्यम् को प्रधान्य दिया जाता है और उसी में ही सन्तुष्ट होकर शून्य को परमार्थ सत्य समझकर ग्रहण किया जाता है। (ब) योगाचार बौद्ध- इनको विज्ञानवादी बौद्ध कहा जाता है । कुछ शिष्य सर्व शून्य में विप्रत्तिपत्ति देखकर कहते हैं कि- सभी को शून्य मानने पर ज्ञान भी उसके अन्तर्गत आ ही जायेगा तब ज्ञेय और हेय, सुख-दुःख ,संसार, बन्ध, निर्वाण आदि का बोध किस आधार पर होगा? बाह्य सत्ता तो अनादि कर्म वासनाजन्य होने से असत् हैं जबकि विज्ञान की सत्ता ही परमार्थिक है। (स) सौत्रान्तिक बौद्ध- इस मत में माध्यमिक और योगाचार की अपेक्षा बाह्य सत्ता का अस्तित्व स्वीकार करने की विशेषता है। ये चित्त तथा बाह्य जगत दोनों की सत्ता मानते हैं। अतः बाह्य वस्तु और उसके अस्तित्व का बोध कराने वाला विज्ञान दोनों ही का अस्तित्व मानना नितान्त आवश्यक है। (द) वैभाषिक- बाहरी पदार्थों की सत्ता चित्त निरपेक्ष है। बाह्य तथा आन्तर पदार्थ का अस्तित्व स्वतंत्र रूप से माना जाना इन्हें युक्त संगत लगता है। ये भूत, भविष्यति और वर्तमान तीनों काल के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। बौद्ध दर्शन में प्रत्यक्ष और अनुमान दोनों ही प्रमाण माने गए हैं। बौद्ध दर्शन के चार आर्य सत्य - (क) दुःख या सर्वम दुःख म- संसार दुःखमय है। यहाँ दुःख का आशय है- सांसारिक धनदौलत इज्जत आदि के उपार्जन में उत्पन्न हआ दुःख। दूसरे उसके संरक्षण में आने वाला दुःख और अंत में उसके उपयोग काल में प्रतिकूलता हो जाने के कारण उत्पन्न हुआ दुःख। इसीलिए संसार को दःखमय माना गया है। यह 5 स्कंधों में किसी एक को पकडने से भी हो सकता है। (ख) दुःख समुदाय (दुःख का कारण)- दूसरा आर्य सत्य यह है कि दुःख अकारण नहीं है। जिस सुख के साथ लालच की भावना लगी रहती है, कभी यहाँ तो कभी वहाँ सुख खोजने की वृत्ति रहती है जो अंततः दुःख का कारण बनती है। दुःख के जरा, मरणादि, अविद्या व तृष्णा आदि मुख्य बारह कारण माने जाते हैं। 144
SR No.009365
Book TitleGunasthan ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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