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________________ AAPAN . कल्पसूत्रे mil [भासरासी] भस्मगशी नाम का [महग्गहे] महाग्रह [संकंते] संक्रमण करता है [तस्स]भगवच्छासशब्दार्थे उसके [पभावेणं] प्रभाव से [दो वाससहस्सेहिं] दो हजार वर्ष पर्यन्त [साहणं] साघु- सनावध्या दि कथनम्। ॥६४९॥ ओंका [वा] अथवा [साहुणीणं] साध्वियों का अथवा [सावयाणं वा सावियाणं वा] श्रावक और श्राविकाओं का [उदए] उदय और [प्या] पूजा-सत्कार [णो भविस्सइ] । नहीं होगा [बहवे मुणी] बहुत से मुनि [सच्छंदयारी] स्वच्छन्द आचार पालनेवाले [भविस्संति] होंगे [सयमेव] अपने आप [संजमिया] संयमी [भविस्संति] होंगे [बहवे । मुणी] अनेक मुनि [मम] मेरा [सलिंग] स्वलिंग साधुलिंग [मुहे] मुख के ऊपर [मुहपत्ति बंधणं] मुखवस्त्रिका का [वज्जिस्संति] त्याग करेगा। [बहवे मुणी] बहुत से मुनि [दव्वलिंगधारी] द्रव्यलिंग को धारण करनेवाले [स मइए] अपनी ही मति से [भवि संति] होंगे [बहवे] अनेक [कुलिंगधारी] कुलिंग को धारण करनेवाले [भविस्संति] होंगे [बहवे] अनेक [णिण्हवा] निह्नव अर्थात् सच्चे अर्थ को छिपानेवाले [भविस्संति] होंगे। ॥६४९॥ %3
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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